गुरुवार, मई 05, 2011

बस यही

द गोल्डन ऑटम, लिओनिद पास्तरनाक 
एक घाटी और ऊपर पतझड़-रंगे जंगल. 
एक यात्री आता है, 
एक नक्शा उसे वहां लाता है. 
या शायद स्मृति. 
बहुत समय पहले एक दिन, 
जब पहली बर्फ गिर रही थी,
इस तरफ आते हुए उसे ख़ुशी महसूस हुई थी, 
इतनी ख़ुशी, अकारण, आँखों से छलकती.
सब कुछ हिलते पेड़ों की लय में था,
उड़ते पंछी की लय में 
पुल पार करती रेलगाड़ी की लय में... 
एक गतिशील उत्सव.
फिर वो बहुत सालों बाद लौटता है,
अब उसे कुछ नहीं चाहिए.
बस केवल एक चीज़, कुछ अनमोल:
एक दृष्टि -- सीधी, साफ़, नाम बिना,
अपेक्षा, उम्मीद, डर बिना,
एक दृष्टि...उस कगार पर 
जहाँ कोई मैं नहीं, जहाँ मैं नहीं.


-- चेस्वाफ़ मीवोश 


चेस्वाफ़ मीवोश (Czeslaw Milosz) पोलैंड के प्रसिद्द कवि, लेखक व अनुवादक थे. उनका जन्म लिथुएनिया में हुआ था और वे पांच भाषाएँ जानते थे -- पोलिश, लिथुएनिअन,रशियन, अंग्रेजी व फ्रेंच. द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात,1951 में उन्होंने पोलैंड छोड़ फ्रांस में आश्रय लिया, और 1970 में अमरीका चले गए. वहां वे यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया में पोलिश साहित्य के प्रोफ़ेसर रहे. उनके 40 से भी अधिक कविताओं व लेखों के संकलन प्रकाशित हुए हैं व कई भाषाओँ में अनूदित किये गए हैं. अन्य कई सम्मानों सहित उन्हें 1980 में नोबेल प्राइज़ भी मिल चुका है.
इस कविता का मूल पोलिश से अंग्रेजी में अनुवाद रोबेर्ट हास ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़