सोमवार, मार्च 18, 2013

अचरज

कैलिफ़ोर्निया स्प्रिंग, अल्बेर बियरश्टैट
California Spring, Albert Bierstadt
धुलाई कभी ख़त्म नहीं हो पाती.
कभी नहीं दे पाता चूल्हा ठीक से आंच.
किताबें कभी पढ़ी नहीं जा पाती.
जीवन नहीं हो पाता कभी पूर्ण.
उस गेंद जैसा है जीवन जिसे लगातार लपकना
और मारना होता है ताकि वह गिर न जाए.
जब एक ओर से होती है बाड़े की मरम्मत,
वह दूसरी और से टूटने लगता है.
छत टपकती है,
रसोई का दरवाज़ा नहीं होता ठीक से बंद,
नींव में दरारें पड़ गई हैं,
घुटनों से फटने लगी हैं बच्चों की पैंटें...
कैसे रख सकता है कोई हर चीज़ का ध्यान.
अचरज की बात मगर यह है कि इस सब के
साथ-साथ हम देख पाते हैं वसंत को
जो हर दिशा में बढ़ती
हर चीज़ से पूर्ण है -- शाम के बादलों से,
ललमुनिया के गीत से और सांझ में
जहाँ तक आँख देख पाए वहाँ तक फैले मैदान में
घास के हर तिनके पर रखी हर ओस की बूँद से.


-- यान काप्लिन्स्की


यान काप्लिन्स्की ( Jaan Kaplinski )एस्टोनिया के कवि, भाषाविद व दार्शनिक हैं व यूरोप के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं. वे अपने स्वतंत्र विचारों व वैश्विक सरोकारों के लिए जाने जाते हैं. उनके कई कविता-संग्रह, कहानियां, लेख व निबंध प्रकाशित हो चुके हैं. उन्होंने कई भाषाओँ से कई भाषाओँ में अनुवाद किये है व उनके स्वयं के लेखन का भी कई भाषाओँ में अनुवाद हुआ है. यह कविता उनके संकलन 'समरज़ एंड स्प्रिंगज़' से है.
इस कविता का मूल एस्टोनियन से अंग्रेजी में अनुवाद फियोना सैम्प्सन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़