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थिकेट्स, इवान शिशकिन Thickets, Ivan Shishkin |
शायद
इस दुनिया में
उस प्यार के सिवाय कोई प्यार नहीं है
जो हम सोचते हैं कि हम पा लेंगे, एक दिन.
मत रुको
करते रहो यह नृत्य, मेरे प्यार, मेरी कविता
चाहे वह मृत्यु ही क्यों न हो.
मैं सोचता हूँ कि मैं हूँ संगीत का स्वर
झुकते सरकंडों के बीच लहराता, उठता-गिरता
मैं पेड़ों के शामियाने तले
धूप के कमरे में घुल-मिल जाता हूँ रोशनी में
मैं छुप जाता हूँ झरनों में कभी
और कभी उतरता हूँ ढलान उन गहराईयों की
जो मुझे दिखाई नहीं देती.
आह प्यार -- एक झरना
थकान की ऊंचाइयों से तिरछा गिरता हुआ.
एक शून्य में से
जहाँ अर्थ
भटकते रहते है जंगल में
प्यार आता है, अनोखा-सा रहता है
हमारी कल्पना से कहीं चौड़ा, और ऊंचा.
क्या कोई आश्रय है इन अंगारों से ?
इस कविता का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद खालेद मत्तावा ने किया है.
इस कविता का हिन्दी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़