![]() |
द ग्रे लवर्स, मार्क शगाल The Grey Lovers, Marc Chagall |
आखिर तुम पहुँचीं कैसे मुझ तक?
मेरी माँ ठीक-से नहीं जानती अल्बानियाई भाषा,
वो लिखती है सादे-से पत्र, बिना विराम और अर्धविराम के,
अपनी युवावस्था में मेरे पिता घूमे थे समन्दरों पर,
मगर तुम आई हो,
चलती हुई मेरे पत्थरों के शहर की पटरी पर,
और संकोच के साथ खटखटाया है दरवाज़ा मेरे तिमंज़ले मकान,
नंबर 16 का.
जीवन में ऐसा बहुत कुछ है जिससे मैंने प्रेम किया है, घृणा की है,
कितनी ही मुश्किलों के लिए मैं रहा हूँ एक 'खुला शहर',
मगर फिर भी...
एक जवान आदमी की तरह
जो अपनी रात की आवारगी से थका-टूटा हुआ
देर रात घर लौटता है,
वैसे ही मैं आया हूँ, वापिस तुम्हारे पास,
एक और रंगरली के बाद और टूटा-फूटा-सा.
और तुम,
मेरे धोखे को न लेते हुए मेरे ख़िलाफ़,
प्यार-से बाल सहलाती हो,
मेरा आखिरी पड़ाव,
कविता.
-- इस्माइल कदारे
इस कविता का मूल अल्बेनियन से अंग्रेजी में अनुवाद राबर्ट एलसी ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़