सोमवार, जनवरी 30, 2012

मैं चाहूँगा होना...

द लांगलोआ ब्रिज एट आर्ल विद विमेन वाशिंग,
विन्सेंट वान गोग
The Langlois Bridge at Arles with Women Washing,
Vincent Van Gogh

मैं चाहूँगा होना रास्ते की धूल 
और गरीबों के पैरों तले रौंदा जाना...

मैं चाहूँगा होना बहती नदी 
और धोबिनों का किनारे पर कपडे धोना...

मैं चाहूँगा होना नदी किनारे का पेड़ 
सर पर केवल आकाश पैरों में पानी लिए...

मैं चाहूँगा होना धोबी का गधा 
मार खाना फिर भी ख्याल रखवाना... 

बेहतर है ये सब 
बजाय इसके कि जीवन को ऐसे बिताना 
हमेशा मुड़-मुड़ के देखना और पछताना...


--  फेर्नान्दो पेस्सोआ ( अल्बेर्तो काइरो )



 फेर्नान्दो पेस्सोआ ( Fernando Pessoa )20 वीं सदी के आरम्भ के पुर्तगाली कवि, लेखक, समीक्षक व अनुवादक थे और दुनिया के महानतम कवियों में उनकी गिनती होती है. यह कविता उन्होंने अल्बेर्तो काइरो ( Alberto Caeiro )के झूठे नाम से लिखी थी. अपने पूरे जीवन काल में उन्होंने 72 झूठे नाम या हेट्रोनिम् की आड़ से सृजन किया, जिन में से तीन प्रमुख थे. और हैरानी की बात तो ये है की इन सभी हेट्रोनिम् या झूठे नामों की अपनी अलग जीवनी, स्वभाव, दर्शन, रूप-रंग व लेखन शैली थी. पेस्सोआ के जीतेजी उनकी एक ही किताब प्रकाशित हुई. मगर उनकी मृत्यु के बाद, एक पुराने ट्रंक से उनके द्वारा लिखे 25000 से भी अधिक पन्ने मिले, जो उन्होंने अपने अलग-अलग नामों से लिखे थे. पुर्तगाल की नैशनल लाइब्ररी में उन पन्नों की एडिटिंग का काम आज तक जारी है. यह कविता उनके संकलन 'द कीपर ऑफ़ शीप ' से है.
इस कविता का मूल पुर्तगाली से अंग्रेजी में अनुवाद रिचर्ड ज़ेनिथ ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़  

शनिवार, जनवरी 28, 2012

उन्मादी कविता

सेल्फ-पोर्ट्रेट विद बोनितो, फरीदा कहलो
Self-Portrait With Bonito, Frida Kahlo

आज फिर मैं अपने आप में नहीं हूँ.
ऐसा बार-बार होता है.
लगता है जैसे कुछ दैवी है.

नीली लहर-सा 
वह बहता है मुझ में.
हरे पत्ते -- तुम शायद मानोगे नहीं --
एक-आध बार 
फूट आये हैं मेरी उँगलियों के पोरों से

कहीं
घने जंगल में 
वसंत के उन्मादी दौरे में.

हालाँकि, बेशक, जानती हूँ मैं वह दूसरा गीत,
एक-ता का वह मधुर आवेश.

अभी कल ही मैंने एक चींटी को रास्ता पार करते देखा, 
नीचे गिरे चीड़ के पत्तों में से राह बनाते.
और मैंने सोचा: 
वह इस जीवन के सिवा कोई दूसरा जीवन कभी नहीं जियेगी.
और मैंने सोचा: 
अगर पूरे जी-जान से वह अपना जीवन जीती है
तो क्या वह अद्भुत रूप से बुद्धिमान नहीं है?
और इस चमत्कारी पहाड़ पर मैं तब तक चढ़ती रही,
गुज़रती रही होकर सब चीज़ों से 
जब तक मैं स्वयं तक न पहुँच गई.

और फिर भी, इन उत्तरीय वनों में भी,
और इन रेत के टीलों पर,
मैं स्वयं की दूसरी खिड़की में से उड़ निकली हूँ 
सफ़ेद बगुला बनने, या फिर नीली व्हेल मछली,
लाल लोमड़ी, या साही.
आह, कितनी बार मेरे तन को पहले ही था 
किसी फूल का तन होने का एहसास!
कितनी बार मेरा मन पहले ही है एक लाल तोता,
घने विचित्र-से पेड़ों के बीच बैठा,
अपने पंख फड़फड़ाता और चिल्लाता हुआ.



-- मेरी ओलिवर 



Mary Oliver  मेरी ओलिवर ( Mary Oliver )एक अमरीकी कव्यित्री हैं, जो 60 के दशक से कविताएँ लिखती आ रहीं हैं. उनके 25 से अधिक कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं और बहुत सराहे गए हैं. उन्हें अमरीका के श्रेष्ठ सम्मान 'नेशनल बुक अवार्ड' व 'पुलित्ज़र प्राइज़' भी प्राप्त हो चुके हैं. उनकी कविताएँ प्रकृति की गुप-चुप गतिविधियों के बारे में हैं, जैसे वो धरती और आकाश के बीच खड़ीं सब देख रहीं हैं. और  उनकी कविताओं में उनका अकेलेपन  से प्यार, एक निरंतर आंतरिक एकालाप व स्त्री का प्रकृति से गहरा सम्बन्ध भी दिखाई देता है.

इस कविता का हिन्दी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

गुरुवार, जनवरी 26, 2012

कि मैं जो भी करूँ वह बहे

द सेन विद अ रोइंग बोट, विन्सेंट वान गोग
The Seine With A Rowing Boat, Vincent Van Gogh

ऐसा हो कि मैं जो भी करूँ 
वह नदी की तरह बहे मुझ से,
जैसा होता है बच्चों के साथ,
न कोई आगे बढ़ाने के लिए बल, 
न रोकने का प्रयास.

फिर इस चढ़ते-उतरते बहाव में, 
इन गहराती लहरों में,
जो जाती है, फिर लौट-लौट आती हैं,
गाया ना होगा जैसे किसी ने कभी,
मैं तुम्हें ऐसे गाता जाऊँगा, 
विस्तृत होती जल-धाराओं से होकर 
मैं सागर में मिल जाऊँगा.


 -- रायनर मरीया रिल्के 


 रायनर मरीया रिल्के ( Rainer Maria Rilke ) जर्मन भाषा के सब से महत्वपूर्ण कवियों में से एक माने जाते हैं. वे ऑस्ट्रिया के बोहीमिया से थे. उनका बचपन बेहद दुखद था, मगर यूनिवर्सिटी तक आते-आते उन्हें साफ़ हो गया था की वे साहित्य से ही जुड़ेंगे. तब तक उनका पहला कविता संकलन प्रकाशित भी हो चुका था. यूनिवर्सिटी की पढाई बीच में ही छोड़, उन्होंने रूस की एक लम्बी यात्रा का कार्यक्रम बनाया. यह यात्रा उनके साहित्यिक जीवन में मील का पत्थर साबित हुई. रूस में उनकी मुलाक़ात तोल्स्तॉय से हुई व उनके प्रभाव से रिल्के का लेखन और गहन होता गुया. फिर उन्होंने पेरिस में रहने का फैसला किया जहाँ वे मूर्तिकार रोदें के बहुत प्रभावित रहे.यूरोप के देशों में उनकी यात्रायें जारी रहीं मगर पेरिस उनके जीवन का भौगोलिक केंद्र बन गया. पहले विश्व युद्ध के समय उन्हें पेरिस छोड़ना पड़ा, और वे स्विटज़रलैंड में जा कर बस गए, जहाँ कुछ वर्षों बाद ल्यूकीमिया से उनका देहांत हो गया. कविताओं की जो धरोहर वे छोड़ गए हैं, वह अद्भुत है. यह कविता उनके संकलन 'बुक ऑफ़ इमेजिज़ ' से है.
इस कविता का जर्मन से अंग्रेजी में अनुवाद जोआना मेसी व अनीता बैरोज़ ने किया है. 
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़