गुरुवार, दिसंबर 20, 2012

क्या चाह ने तुम्हें सदा विचलित नहीं किया?

गेब्रिएल मुनटः, वैसिली कैनडिनस्की
Gabriele Munter, Wassily Kandinsky 
क्या चाह ने तुम्हें सदा विचलित नहीं किया,
मानो कोई प्रेमी अभी प्रकट होने ही वाला हो?

स्वयं को महसूस करने दो इस चाह को.
वह उनसे जोड़ती है तुम्हें 
जिन्होंने सदियों से गाया है इसे,
और गाया है विशेषतः अनुत्तरित प्रेम.
इस प्राचीनतम दुःख का अंततः
क्या फल नहीं मिलना चाहिए हमें?




-- रायनर मरीया रिल्के 




 रायनर मरीया रिल्के ( Rainer Maria Rilke ) जर्मन भाषा के सब से महत्वपूर्ण कवियों में से एक माने जाते हैं. वे ऑस्ट्रिया के बोहीमिया से थे. उनका बचपन बेहद दुखद था, मगर यूनिवर्सिटी तक आते-आते उन्हें साफ़ हो गया था की वे साहित्य से ही जुड़ेंगे. तब तक उनका पहला कविता संकलन प्रकाशित भी हो चुका था. यूनिवर्सिटी की पढाई बीच में ही छोड़, उन्होंने रूस की एक लम्बी यात्रा का कार्यक्रम बनाया. यह यात्रा उनके साहित्यिक जीवन में मील का पत्थर साबित हुई. रूस में उनकी मुलाक़ात तोल्स्तॉय से हुई व उनके प्रभाव से रिल्के का लेखन और गहन होता गुया. फिर उन्होंने पेरिस में रहने का फैसला किया जहाँ वे मूर्तिकार रोदें के बहुत प्रभावित रहे.यूरोप के देशों में उनकी यात्रायें जारी रहीं मगर पेरिस उनके जीवन का भौगोलिक केंद्र बन गया. पहले विश्व युद्ध के समय उन्हें पेरिस छोड़ना पड़ा, और वे स्विटज़रलैंड में जा कर बस गए, जहाँ कुछ वर्षों बाद ल्यूकीमिया से उनका देहांत हो गया. कविताओं की जो धरोहर वे छोड़ गए हैं, वह अद्भुत है. यह अंश उनकी "दुईनो एलेजीज़ " से है। 

इस कविता का जर्मन से अंग्रेजी में अनुवाद जोआना मेसी व अनीता बैरोज़ ने किया है. 
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़