टेम्पल ऑफ़ अपोलो इन फिगालिया, कार्ल ब्र्युलोव Temple of Apollo in Phigalia, Karl, Bryullov |
भेड़ें संगमरमर के खण्डहरों के बीच उग आई घास चर रही थीं.
और नीचे नदी किनारे औरतें कपड़े धो रही थीं.
तुम सुन सकते थे लोहार की दुकान से आती हथौड़े की आवाज़.
चरवाहे ने सीटी बजाई थी. और भेड़ें ऐसे दौड़ी थीं उसकी ओर
मानो संगमरमर के भग्नावशेष उठ कर दौड़ रहे हों.
कनेर के पेड़ों के पीछे
पानी की मोटी गर्दन ठंडक झलका रही थी.
पानी की मोटी गर्दन ठंडक झलका रही थी.
एक औरत ने अपने धुले कपड़े सुखा दिए थे
झाड़ियों पर और मूर्तियों पर --
झाड़ियों पर और मूर्तियों पर --
और उसने सुखाया अपने पति का लंगोट हेरा देवी की प्रतिमा के कन्धों पर.
एक अद्भुत शांतिपूर्ण और मौन अंतरंगता चलती आ रही थी सालों से.
नीचे तट पर मछुआरे पास से निकल रहे थे,
सर पर मछलियों से भरी चौड़ी टोकरियाँ लिए
मानो रोशनी की लम्बी, पतली फांकें लेकर जा रहे हों :
सुनहरी, गुलाबी, जामुनी -- बिलकुल वैसे ही जैसे
वह जुलूस, ज़री के काम वाली देवी की चूनर लिए था,
वह चूनर जो हमने काट डाली थी उस दिन और
सजा लिए थे उसके परदे और मेज़पोश अपने खाली घरों में.
--- ज्यानिस रीत्ज़ोज़
इस कविता का मूल ग्रीक से अंग्रेजी में अनुवाद एडमंड कीली ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़