रविवार, जुलाई 10, 2011

कल भोर होते ही

ऐवन्यू ऑफ़ पोप्लर्ज़ एट सनसेट, विन्सेंट वान गोग
Avenue Of Poplars At Sunset, Vincent Van Gogh 
कल, भोर होते ही, 
जिस घड़ी सब उजला होने लगता है, 
मैं निकल पडूंगा. 
देखो, मैं जानता हूँ की तुम मेरी राह देख रही हो.
मैं जंगल से गुज़रुंगा, मैं पर्वत पार करूँगा
अब मैं तुमसे और दूर नहीं रह पाऊंगा.


आँखें अपनी सोच पर स्थिर किए 
मैं चलता रहूँगा,
बिना बाहर कुछ देखे, बिना कोई आवाज़ सुने,
अकेला, अपरिचित, पीठ झुकी, हाथ बंधे हुए,
उदास, 
और दिन मेरे लिए रात जैसा ही होगा.

ढलती सांझ का सोना नहीं देख पाऊंगा मैं,
न ही दूर आरफ्लर शहर पर गिरते धुंध के पर्दों को,
और जब मैं पहुँच जाऊँगा, 
तो हरे हॉली के पत्ते और फूलती हेदर
रख दूंगा तुम्हारी कब्र पर.


-- विक्टर ह्यूगो 





विक्टर ह्यूगो ( Victor Hugo ) उन्नीसवीं सदी के फ्रांसीसी कवि, नाटककार, उपन्यासकार व निबंधकार थे. हालाँकि वे कवि के रूप में अधिक जाने जाते हैं, 20 वर्ष की आयु में ही उनका पहला कविता संकलन प्रकाशित हो चुका था, मगर उनके उपन्यासों का भी साहित्य में अपना ही स्थान है. और किसी लेखक ने अपने जीवन काल में शायद ही इतना लेखन किया हो जितना विक्टर ह्यूगो ने किया -- 22 से अधिक कविता संकलन; 8 उपन्यास, जिसमे से 'ले मिज़ेराब्ल' और 'द हंचबैक ऑफ़ नोत्र दाम' खूब प्रसिद्द हुए;10 नाटक जो उस समय के बदलते राजनैतिक माहौल पर केन्द्रित थे; और इस के इलावा अनेक निबंध व लेख. यह कविता उनके संकलन 'ले कोंतोंपलासियों' से है. यह कविता उन्होंने अपने बेटी लिओपोलडीन के लिए लिखी थी जिसका 19 वर्ष की आयु में देहांत हो गया था.
इस कविता का मूल फ्रेंच से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़