द रिवर, क्लौद मोने The River, Claude Monet |
मगर उन्हें कहीं लेकर नहीं जाता --
इतने फैलाव में दम घुट जाता है मेरा !
मैं फिर सांस लेता हूँ, वो रहा क्षितिज फिर-से,
अपनी आँखें ढंकने के लिए मैं कुछ ढूँढने लगता हूँ.
शायद रेत मुझे अधिक भाती --
एक परतों भरा जीवन
नदी के कटीले किनारों के साथ-साथ.
मैं लिपटा रहता शर्मीली धारा के आँचल से,
भँवर से, उथले पानियों और गड्ढों से.
हम गहरे सामंजस्य से काम करते
एक पल के लिए, एक सदी के लिए.
मैंने उस तरह के तेज़ी से गिरते जलप्रपात बहुत चाहे हैं.
पानी में बहते लकड़ी के लट्ठों की छाल के भीतर
कान लगाया होता मैंने और सुनी होती
पेड़ के वलयों की
बाहर की ओर चलते आने की आवाज़.
-- ओसिप मैंडलस्टैम
इस कविता का मूल रशियन से अंग्रेजी में अनुवाद क्लेरन्स ब्राउन व डब्ल्यू एस मर्विन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़