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द टेलीफोन, तमारा द लेम्पिका The Telephone, Tamara de Lempicka |
एक-दूसरे की आँखों में,
और मूक लोग तुष्ट हो जाएँ,
एक प्रयास किया है
सरकार ने, फैसला लिया है
कि हर व्यक्ति को मिलेंगे केवल
एक सौ सरसठ शब्द, हर रोज़.
जब फ़ोन बजता है, बिना हेलो कहे
मैं उसे कान से लगाता हूँ. रेस्तराँ में
चिकन नूडल सूप की ओर कर देता हूँ इशारा.
खूब ढाल लिया है खुद को मैंने इस नयी चाल में.
देर रात, जब मैं करता हूँ फ़ोन
अपनी दूर-बसती प्रेमिका को
गर्व से उसे कहता हूँ
आज मैंने केवल उनसठ खर्च किये
बाकी बचाए हैं तुम्हारे लिए.
जब वो जवाब नहीं देती, मैं जान जाता हूँ
कि वो अपने सारे शब्द इस्तेमाल कर चुकी है,
तो मैं धीमे-से फुसफुसाता हूँ आई लव यू
बत्तीस गुणा तीन बार.
फिर दोनों कान से फोन लगाये बैठे रहते हैं
सुनते रहते हैं एक-दूसरे की साँसों की आवाज़.
-- जेफ्फ्री मकडेनिअल
इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
वाह! बहुत सुन्दर कविता ! और अनुवाद भी,,,,,!
जवाब देंहटाएंfantastic!
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