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| बाय द विंडो पोर्ट्रेट ऑफ़ ओल्गा त्रुबनिकोवा, वेलेंटिन सेरोव | 
पीली, बारीक, सीधी,
जो खिड़की से अन्दर आ रही है,
उस सूर्यकिरण से प्रार्थना करती हूँ.
मैं आज सुबह से ही चुप हूँ, 
और मेरा मन  -- बँटा हुआ है.
मेरे वाश स्टैण्ड का तांबा 
अब हरा हो चुका है, 
मगर सूर्यकिरण उस से,
कितने मोहक ढंग से खेलती है. 
शाम की चुप्पी में
कितनी निश्छल है वह, कितनी सरल,
मगर इस उजड़े मंदिर में,
मेरे लिए वह है 
एक सुनहरा उत्सव, 
एक आश्वासन.
-- आना आख्मतोवा 
 
                                                                                                                                                                                          
आना आख्मतोवा 20  वीं सदी की जानी-मानी रूसी कवयित्री हैं. वे 24  वर्ष की थी जब उनका पहला कविता संकलन प्रकाशित हुआ और अगले 7  वर्षों में उनके 4  संकलन और प्रकाशित हुए. वे 'आर्ट फॉर आर्ट ' की समर्थक थी. मगर रूसी क्रांति के बाद, लेखकों, कवियों, चित्रकारों की स्वंत्रता में बाधा आ गई. 7  वर्ष तक उन्हें कुछ प्रकाशित करने की अनुमति नहीं दी गई. हालाँकि उन्होंने देशभक्तिपूर्ण कविताएँ सरकारी मैगजीनों में छपवायीं, मगर उनकी दूसरी कविताओं को प्रकाशित नहीं होने दिया गया. उनकी सबसे प्रसिद्द कविताएँ -- रिक्वीम और पोएम विदाउट अ हीरो, अपने देश के राजनैतिक माहौल व रूस की काम्यनिस्ट सरकार के बारे में हैं. इस कविता का मूल रशियन से अंग्रेजी में अनुवाद तान्या कार्शटेट ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद रीनू तलवाड़