बुधवार, जून 22, 2011

कुछ 'हमारा' नहीं था

डेर स्पाज़ीअरगैंग. मार्क शगाल 

कभी कोई 'हम', कुछ 'हमारा' नहीं था ;
जो भी आनंद उठाया उन दोनों ने, 
वह अलग-अलग ही था:
हल्की बूंदों की फुहार, 
गर्म सड़क पर, छतों पर गिरती 
तेज़ बारिश की तिरछी बौछार, 
उन्हें उल्लासित करती थी,
मगर वह ख़ुशी अलगाव से निर्धारित थी --
चमकती हुई दोपहर का आलस,
समुद्र का कटोरा जब 
चमचमाते सिक्कों से भरा होता है ,
या पूर्णिमा की चांदनी-बिछी सफ़ेद सड़क,
वही आनंद जो उन्हें अलग करता है,
बिना बदलाव, उन्हें जोड़ता भी है,
आकस्मिक झोंकों में ले भी जाता है
सुख के बहुत पास ,
जैसे पत्तों को एक साथ हिलाता है 
एक हरी-सी 'हाँ' में,
मगर पहले से ही उनके जीवन का 
गहरा बंटवारा कर चुका होता है.
चांदनी रातों में बादल 
मंदिर के संगमरमर-से चमकते रहे;
वह हठी था, 
अपनी ही आशाओं की बलि चढ़ गया,
जुगनुओं की तरह जिनकी झूठी रोशनी, 
उजाला होते ही धुंधली हो जाती है.

-- डेरेक वालकॉट


डेरेक वालकॉट वेस्ट इंडीज़ के कवि, नाटककार व लेखक हैं. 1992 में वे नोबेल  पुरुस्कार से  सम्मानित किये गए थे. उनके अनेक कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं, जिन में उनका महाकाव्य 'ओमेरोस' भी है.  उन्होंने बीस नाटक भी लिखे हैं जिनका विश्व भर में प्रदर्शन हुआ है. उनका नवीनतम कविता संग्रह ' वाईट एग्रेट्स' 2010 में प्रकाशित हुआ जिसे टी.एस एलीयट पोएट्री प्राइज प्राप्त हुआ.
यह कविता ' वाईट एग्रेट्स' के 'सिसिलियन सुईट ' में से ली गयी है.

इस कविता का हिन्दी में अनुवाद -- रीनू  तलवाड़