द बोयेज़ ऑन द ग्रास, इल्या रेपिन The Boys on the Grass, Ilya Repin |
मैं घास में लेट जाता हूँ
और भूल जाता हूँ
जो सब मुझे पढ़ाया गया है.
जो भी मुझे पढाया गया
उसने मुझे न कभी अधिक गर्माहट दी
न ठंडक.
जो मुझे बताया गया कि विद्यमान है
नहीं बदला उसने
कभी किसी वस्तु का आकार.
जो भी मुझे दिखाया गया
उसने कभी नहीं छुआ मेरी आँखों को.
जिसकी भी ओर मेरा ध्यान खींचा गया
कभी वहां था ही नहीं :
केवल जो वहां था वहां था.
-- फेर्नान्दो पेस्सोआ ( अल्बेर्तो काइरो )
फेर्नान्दो पेस्सोआ ( Fernando Pessoa )20 वीं सदी के आरम्भ के पुर्तगाली कवि, लेखक, समीक्षक व अनुवादक थे और दुनिया के महानतम कवियों में उनकी गिनती होती है. यह कविता उन्होंने अल्बेर्तो काइरो ( Alberto Caeiro )के झूठे नाम से लिखी थी. अपने पूरे जीवन काल में उन्होंने 72 झूठे नाम या हेट्रोनिम् की आड़ से सृजन किया, जिन में से तीन प्रमुख थे. और हैरानी की बात तो ये है की इन सभी हेट्रोनिम् या झूठे नामों की अपनी अलग जीवनी, स्वभाव, दर्शन, रूप-रंग व लेखन शैली थी. पेस्सोआ के जीतेजी उनकी एक ही किताब प्रकाशित हुई. मगर उनकी मृत्यु के बाद, एक पुराने ट्रंक से उनके द्वारा लिखे 25000 से भी अधिक पन्ने मिले, जो उन्होंने अपने अलग-अलग नामों से लिखे थे. पुर्तगाल की नैशनल लाइब्ररी में उन पन्नों की एडिटिंग का काम आज तक जारी है. यह कविता उनके संकलन 'द कीपर ऑफ़ शीप ' से है.
इस कविता का मूल पुर्तगाली से अंग्रेजी में अनुवाद रिचर्ड ज़ेनिथ ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़