बुधवार, जून 01, 2011

लाइलैक की टहनियाँ हवा में झूल रही हैं...

लाइलैकस, विन्सेंट वान गोग
Lilacs, Vincent Van Gogh

लाइलैक की टहनियाँ हवा में झूल रही हैं 
और बालकॉनी के खुले दरवाज़े से
ज़मीन पर सरकती आती 
उनकी छाया भी झूल रही है.
आज मैंने खिडकियों के शीशे साफ़ किये
और बहुत देर तक उदास रहा:
अचानक सबकुछ 
इतना साफ़, इतना पास, 
इतना इस पल में प्रतिष्ठित था, 
कि मेरा दूर होना 
और स्पष्ट हो गया,
और उदास लगने लगा.
क्या केवल किसी पतझड़ के अंत में, 
किसी जंगल में 
मिला हूँ मैं अपने दोस्तों से:
नन्हे पंछियों से, देवदारों से?
क्या वहां मैं खुद से भी मिल चुका हूँ? 
यह उदासी कहाँ से आती है?
सूरज आगे बढ़ जाता है.
हवा थम जाती है.
लाइलैक की टहनियों की छाया 
ओझल होने से पहले 
किताबों की शेल्फ पर झूलती रहती है.


-- यान काप्लिन्स्की

Author: Estonian Literary Magazine  






यान काप्लिन्स्की ( Jaan Kaplinski )एस्टोनिया के कवि, भाषाविद व दार्शनिक हैं व यूरोप के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं. वे अपने स्वतंत्र विचारों व वैश्विक सरोकारों के लिए जाने जाते हैं. उनके कई कविता-संग्रह, कहानियां, लेख व निबंध छप चुके हैं. उन्होंने कई भाषाओँ से कई भाषाओँ में अनुवाद किये है व उनके स्वयं के लेखन का भी कई भाषाओँ में अनुवाद हुआ है. यह कविता उनके संकलन 'ईवनिंग ब्रिनग्ज़ एवरीथिंग बैक ' से है.
इस कविता का मूल एस्टोनियन से अंग्रेजी में अनुवाद फियोना सैम्प्सन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़