रविवार, नवंबर 27, 2011

भींचे प्राण

ऑटम लैंडस्केप एट डस्क, विन्सेंट वान गोग
Autumn Landscape At Dusk, Vincent Van Gogh

हमने यह झुटपुटा भी खो दिया.
आज शाम जब नीली रात का पर्दा
गिर रहा था दुनिया पर
हमें हाथों में हाथ लिए किसी ने नहीं देखा.

मैंने अपनी खिड़की से देखा है 
दूर पर्वत के शिखरों पर 
सूर्यास्त का उत्सव.

कभी-कभी धूप का एक चिकत्ता 
मेरी हथेली पर सिक्के-सा जला है.

मैंने तुम्हें याद किया 
और प्राण भींच गए उस उदासी में 
जिसे तुम अच्छे से जानती हो.

कहाँ थी तुम उस समय?
और कौन था वहां?
क्या कह रहा था?
क्यों सारा का सारा प्यार अचानक उमड़ आता है मुझ में
तब जब मैं उदास होता हूँ और मुझे लगता है कि तुम दूर हो?

जो हमेशा सांझ में बंद हो जाती थी
वो किताब गिर गयी और मेरा नीला स्वेटर 
एक चोट-खाए कुत्ते-सा लोट गया मेरे पैरों में .

हमेशा, हमेशा तुम लौट जाती हो साँझों में से 
बुतों को मिटाते झुटपुटे की ओर.



-- पाब्लो नेरुदा 



पाब्लो नेरुदा ( Pablo Neruda ) को कौन नहीं जानता. वे चिली के कवि थे.कोलंबिया के महान उपन्यासकार गेब्रिअल गार्सिया मार्केज़ ने उन्हें ' 20 वीं सदी का, दुनिया की सभी भाषाओँ में से सबसे बेहतरीन कवि ' कहा है. 10वर्ष की आयु में उन्होंने कविताएँ लिखनी शुरू की. 19वर्ष की आयु में उनका पहला संकलन 'क्रेपेस्क्युलारियो ' प्रकाशित हुआ और उसके बाद उनकी प्रसिद्द प्रेम कविताएँ ' ट्वेंटी पोएम्ज़ ऑफ़ लव एंड अ सोंग ऑफ़ डेसपैर '. दोनों संकलन खूब सराहे गए और दूसरी भाषाओँ में अनूदित लिए गए. उनकी प्रेम कविताओं की तो सहस्रों प्रतियाँ आज तक बिक चुकी है. उनके पूरे लेखन काल में उनकी 50से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हुई और अनेक भाषाओँ में असंख्य अनुवाद हुए. 1971में उन्हें नोबेल प्राइज़ भी प्राप्त हुआ. 
इस कविता का मूल स्पेनिश से अंग्रेजी में अनुवाद डब्ल्यू एस मर्विन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़