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ऑटम लैंडस्केप एट डस्क, विन्सेंट वान गोग Autumn Landscape At Dusk, Vincent Van Gogh |
हमने यह झुटपुटा भी खो दिया.
आज शाम जब नीली रात का पर्दा
गिर रहा था दुनिया पर
हमें हाथों में हाथ लिए किसी ने नहीं देखा.
मैंने अपनी खिड़की से देखा है
दूर पर्वत के शिखरों पर
सूर्यास्त का उत्सव.
कभी-कभी धूप का एक चिकत्ता
मेरी हथेली पर सिक्के-सा जला है.
मैंने तुम्हें याद किया
और प्राण भींच गए उस उदासी में
जिसे तुम अच्छे से जानती हो.
कहाँ थी तुम उस समय?
और कौन था वहां?
क्या कह रहा था?
क्यों सारा का सारा प्यार अचानक उमड़ आता है मुझ में
तब जब मैं उदास होता हूँ और मुझे लगता है कि तुम दूर हो?
जो हमेशा सांझ में बंद हो जाती थी
वो किताब गिर गयी और मेरा नीला स्वेटर
एक चोट-खाए कुत्ते-सा लोट गया मेरे पैरों में .
हमेशा, हमेशा तुम लौट जाती हो साँझों में से
बुतों को मिटाते झुटपुटे की ओर.
-- पाब्लो नेरुदा
इस कविता का मूल स्पेनिश से अंग्रेजी में अनुवाद डब्ल्यू एस मर्विन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़