सोमवार, अक्तूबर 24, 2011

पानी के बुलबुले

दी ओल्ड टावर इन द फील्ड्ज़, विन्सेंट वान गोग
The Old Tower In The Fields, Vincent Van Gogh

आग के एक बड़े अध-मिटे धब्बे-सा 
डूबता सूरज 
ठहरे बादलों में कुछ देर ठहर जाता है.
सांझ के मौन में दूर कहीं 
सुनता हूँ सीटी कि धीमी आवाज़. 
कोई रेलगाड़ी जा रही होगी.

इस पल में 
एक अस्पष्ट-सा विरह मुझे घेर लेता है 
साथ ही एक अज्ञात और शांत-सी चाह 
जो आती है जाती है.

ऐसे ही, कभी, नदियों की सतह पर,
होते हैं पानी के बुलबुले 
जो बनते हैं फिर फूट जाते हैं.
और उनका कोई अर्थ नहीं होता 
सिवाय पानी के बुलबुले होना 
जो बनते हैं फिर फूट जाते हैं.




--  फेर्नान्दो पेस्सोआ ( अल्बेर्तो काइरो )



 फेर्नान्दो पेस्सोआ ( Fernando Pessoa )20 वीं सदी के आरम्भ के पुर्तगाली कवि, लेखक, समीक्षक व अनुवादक थे और दुनिया के महानतम कवियों में उनकी गिनती होती है. यह कविता उन्होंने अल्बेर्तो काइरो ( Alberto Caeiro )के झूठे नाम से लिखी थी. अपने पूरे जीवन काल में उन्होंने 72 झूठे नाम या हेट्रोनिम् की आड़ से सृजन किया, जिन में से तीन प्रमुख थे. और हैरानी की बात तो ये है की इन सभी हेट्रोनिम् या झूठे नामों की अपनी अलग जीवनी, स्वभाव, दर्शन, रूप-रंग व लेखन शैली थी. पेस्सोआ के जीतेजी उनकी एक ही किताब प्रकाशित हुई. मगर उनकी मृत्यु के बाद, एक पुराने ट्रंक से उनके द्वारा लिखे 25000 से भी अधिक पन्ने मिले, जो उन्होंने अपने अलग-अलग नामों से लिखे थे. पुर्तगाल की नैशनल लाइब्ररी में उन पन्नों की एडिटिंग का काम आज तक जारी है. यह कविता उनके संकलन 'द कीपर ऑफ़ शीप ' से है.
इस कविता का मूल पुर्तगाली से अंग्रेजी में अनुवाद रिचर्ड ज़ेनिथ ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़