शनिवार, जुलाई 30, 2011

निशा गीत


रोड, आइसाक लेवितान
Road, Isaac Levitan


रात को गाड़ी चलाता हुआ मैं एक गाँव से गुज़रता हूँ,
कदम बढ़ा कर घर, गाड़ी की हेडलाइट में आ जाते हैं --
वे अब जग चुके हैं, कुछ पीना चाहते हैं.
घर, खलिहान, नाम-तख्तियाँ, वीरान गाड़ी-घर -- अब
सब एक जीवन ओढ़ लेते हैं. मनुष्य सो रहे हैं:

कुछ शांतिपूर्वक सो पाते हैं, औरों के चेहरों पर तनाव है 
मानों अमरत्व के लिए कड़ा प्रशिक्षण कर रहे हों.
गहरी नींद में भी उसे छोड़ने की हिम्मत नहीं कर पाते.
बंद दरवाज़ों की तरह वे इंतज़ार करते रहते हैं 
जबकि रहस्यमय जीवन पास से गुज़रता रहता है.

शहर के बाहर, सड़क बहुत समय तक जंगल में फैली रहती है.
पेड़, पेड़ एक दूसरे से की गई मूक संधि में चुप हैं.
उनका रंग अत्यंत नाटकीय है, मानो आग की रोशनी में हों.
कितना साफ़-साफ़ दिखता है हर पत्ता!
वे घर तक मेरा पीछा करते हैं.

मैं लेटा हूँ और बस सोने ही लगा हूँ,
अपरिचित बिम्ब और चिन्ह अपने आप को बनाते हैं
मेरी पलकों के पीछे वाली अँधेरी दीवार पर.
सोने और जागने के बीच के समय में 
एक बड़ा-सा अक्षर अन्दर आने की कोशिश करता है
पूरी तरह सफल हुए बिना.



-- तोमास त्रांसत्रोमर 



                               
तोमास त्रांसत्रोमर ( Tomas Tranströmer )स्वीडन के लेखक, कवि व अनुवादक हैं जिनकी कविताएँ न केवल स्वीडन में, बल्कि दुनिया भर में सराही गयीं हैं. उन्होंने 13 वर्ष की आयु से ही लिखना शुरू कर दिया था. उनके 12 से अधिक  कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं व उनकी कविताएँ लगभग 50 भाषाओँ में अनूदित की गईं हैं. उन्हें अपने लेखन के लिए अनेक सम्मान प्राप्त हुए है जिनमे इंटरनैशनल पोएट्री फोरम का स्वीडिश अवार्ड भी शामिल है. वे नोबेल प्राइज़ के लिए नामित भी किये गए हैं. लेखन के इलावा वे जाने-माने मनोवैज्ञानिक भी थे, जो कार्य उन्हें स्ट्रोक होने के बाद छोड़ना पड़ा. उनका एक हाथ अभी भी नहीं चलता है, मगर दूसरे हाथ से वे अब भी लिखते हैं. यह कविता उनके अंग्रेजी में अनूदित संकलन ' द हाफ -फिनिश्ड हेवन ' से है.

इस कविता का मूल स्वीडिश से अंग्रेजी में अनुवाद रोबेर्ट ब्लाए ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़ 

गुरुवार, जुलाई 28, 2011

एक गुंजायमान अकेलापन

स्टारी नाईट ओवर द रोन, विन्सेंट वान गोग
Starry Night Over The Rhone, Vincent Van Gogh

रात खींच कर ले गयी उसको 
प्यार के अकेलेपन में उठाये आनंद 
के शिखर तक, आत्मा मुक्त, 
सारी समझदारी जलती हुई
एक समर्पित खोज की आग में.
आँखें एक जीवित महासागर से लबालब,
वह अपनी यात्रा की भोर तक जा पाया. 
वह जानता था रात होना
और गहराईयों तक सहना.
उसकी प्रार्थना पर्वतों में 
सितारों की गूढ़ नि:शब्दता को 
खुली हुई थी.
उसके दिनों का बीतना 
बस एक सामंजस्य था,
एक चपल ज्योति की अनंत उड़ान-सा.
उसने सागर पार किया: 
जब पागल पवन पूरी तरह उन्मुक्त थी, 
और किनारे एक गुंजायमान अकेलेपन 
में पाए गए.
देह उसका घर थी, 
और भोर जिए-गए प्यार कि नई देहरी.
दिन एक छाया था, 
घड़ियाँ जैसे गेहूं की बालियों से,
रेगिस्तान में सोई चुप्पी से कढ़ी हुई:
हर पल में उसे उम्मीद थी 
एक जलते-हुए जोश की,
उसे उम्मीद थी कि आग रात बन जाएगी,
वह झरना गाएगी जिसे वह सुनता है.

उसकी आँख की पुतली में अब दूरी नहीं थी.
वह जानता था रात होना
और गहराईयों तक सहना.


-- कार्लोस ओबरेगोन


Photo Carlos  Obregón © Image:







कार्लोस ओबरेगोन ( Carlos Obregón ) कोलम्बिया के कवि थे. उन्हें कोलम्बियन कविता का सबसे अच्छी तरह छुपाया राज़ कहा जा सकता है. हालाँकि उनका  कृतित्व अधिक नहीं है, ( 33 वर्ष की आयु में उन्होंने आत्महत्या कर ली थी ), मगर अब उन्हें महान लातिन-अमरीकी कवियों में गिना जाने लगा है. भौतिकी और दर्शन पढने-पढ़ाने के इलावा उन्होंने अनेक यात्राएँ की. उनके अन्दर एक असंतोष, एक अधीरता थी. उन्होंने स्पेन में काफी समय बिताया और वहीँ पर उनकी दो किताबें प्रकाशित हुईं, जो उनके छोटे लेकिन गहन जीवन का  दस्तावेज़ हैं.
इस कविता का मूल स्पेनिश से अंग्रेजी में अनुवाद निकोलास सुएस्कून ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

मंगलवार, जुलाई 26, 2011

हवा में ऐसे डोलता है

फील्ड ऑफ़ स्टब्बल विद थंडरक्लाउड ओवरहेड, विन्सेंट वान गोग  
Field Of Stubble With Thunderclouds Overhead,Vincent Van Gogh


हवा में ऐसे डोलता है मेरा जीवन 
जैसे जाली-से लिपटा पत्ता झूलता है 
पतझड़ की तेज़ तूफानी हवा में.
और जैसे एक लहर टकराती है किनारे से
तूफ़ान में एक पियानो सुनाई देता है.
काले-घने बादल
जल्दी-जल्दी चलते हुए हवा के संग.
एक मलिन आईना है मेरे मन में.
जब भी मैं उसे देखता हूँ
मेरा चेहरा काला हो जाता है,
जलने लगता है, दुखने लगता है,
जैसा कि केवल मैं ही 
अपने एकांत में जान पाता हूँ.
मेरा जीवन हवा में डोलता है 
इस तूफानी पतझड़ में 
जब हवा तेज़ी से बहती है खेत के पार.


-- स्रेच्को कोसोवेल 




  स्रेच्को कोसोवेल ( Srečko Kosovel ) स्लोवीनिया के कवि थे जिन्हें स्लोवीनिया का 'रिम्बो' भी कहा जाता है. 22 साल की अल्पायु में ही उनका देहांत हो गया था, मगर अपने पीछे वे लगभग एक हज़ार सुन्दर कविताएँ छोड़ गए. अब वे मध्य-यूरोपीय माडर्नस्ट कविता के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं. उनकी कविताएँ प्रथम विश्व युद्ध के बाद की हताशा व खलबली दर्शाती हैं.हैरानी की बात है की मध्य-यूरोप के छोटे कसबे में रहते कोसोवेल ने, टैगोर की लेखन में, वह शान्ति व दर्शन पाया जो वे खोज रहे थे. उनकी कविताओं में पचास से भी अधिक बार टैगोर का उल्लेख होता है.
इस कविता का मूल स्लोवीनियन से अंग्रेजी में अनुवाद नीके कोफिजान्सिच पोकोर्न ने किया है.

इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़ 

रविवार, जुलाई 24, 2011

तुम अभी भी जीवित हो...

पोर्ट्रेट ऑफ़ अ यंग पेजेंट, विन्सेंट वान गोग
Portrait Of A Young Peasant, Vincent Van Gogh

तुम अभी भी जीवित हो, और अभी तक अकेले नहीं हुए --
अपने खाली हाथ लिए, वह अभी भी तुम्हारे पास है,
और एक आनंद पहुंचा देता है तुम दोनों को
धुंध और भूख और तेज़ गिरती बर्फ के बीच से 
अपरिमित मैदानों के पार.

भव्य निर्धनता, राजसी गरीबी!
चैन से रहो उसमें, शांत रहो.
धन्य हैं ये दिन, ये रातें,
और मासूम है यह मेहनत का मीठा संगीत.

दयनीय है वह आदमी 
जो अपनी छाया के कुत्ते से डर कर भागता है,
जिसे एक हवा घुटनों से काट लेती है,
और गरीब है वह जो अपने जीवन का चिथड़ा 
फैलाता है एक छाया से क्षमा की भीख मांगने के लिए.


-- ओसिप मंदेलश्ताम 


Osip Mandelstam ओसिप मंदेलश्ताम ( Osip Mandelstam ) रूसी कवि व निबंधकार थे और विश्व साहित्य में भी उनकी गीतात्मक कविताओं का विशिष्ट स्थान है. वे यहूदी थे और उनका परिवार पोलिश मूल का था, मगर वे सेंट पीटर्सबर्ग में बड़े हुए. स्कूल के समय से ही वे कविता लिखने लगे थे. उन्होंने अपने समकालीन रूसी कवियों के साथ मिल कर 'एक्मेइज़म'  ( Acmeism ) की स्थापना की. 22 वर्ष की आयु में उनका पहला कविता संकलन प्रकाशित हुआ -- द स्टोन. जब उनकी कविताओं में रूसी क्रांति के दिग्भ्रमित होने का दुःख छलकने लगा, तो स्तालिन ने उन्हें निर्वासित कर दिया. उनके अनेक कविता व निबंध संग्रह प्रकाशित हुए व उनकी कविताओं का खूब अनुवाद भी किया गया है.
इस कविता का मूल रशियन से अंग्रेजी में अनुवाद क्लेरन्स ब्राउन व डब्ल्यू एस मर्विन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

शुक्रवार, जुलाई 22, 2011

क्योंकि

द स्क्रीम, एडवर्ड मंच
The Scream, Edvard Munch

क्योंकि जंगले के सामने ही बसों को रोक दिया गया था 
क्योंकि दुकान की रोशन खिडकियों में खड़ी गुड़ियों ने इशारे किये थे 
क्योंकि साइकिल वाली लड़की बहुत देर तक रुकी रही थी 
दवा की दुकान के सामने 
क्योंकि बढई ने शराबखाने का शीशे का दरवाज़ा तोड़ दिया था 
क्योंकि बच्चा अपनी चुराई हुई पेंसिल के साथ अकेला था लिफ्ट में 
क्योंकि कुत्तों ने समुद्र-किनारे के बंगलों को छोड़ दिया था 
क्योंकि नाली की जंग-लगी जाली पर बिच्छू-बूटी उग आई थी 
क्योंकि आकाश एक लाल मछली के कारण पीला पड़ गया था
क्योंकि पहाड़ पर घोडा सितारे से भी अधिक अकेला था 
क्योंकि ये और वे सब शिकार थे 
क्योंकि ऐसा था इसीलिए, सिर्फ इसीलिए, मैंने तुम से झूठ बोला था 


--- ज्यानिस रीत्ज़ोज़ 


 ज्यानिस रीत्ज़ोज़ ( Yannis Ritsos ) एक युनानी कवि और वामपंथी ऐक्टिविस्ट थे. टी बी और दुखद पारिवारिक समस्याओं से त्रस्त, अपने वामपंथी विचारों के लिए उत्पीड़ित, उन्होंने ने कई वर्ष सैनटोरीअमों, जेलों व निर्वासन में बिताये मगर पूरा समय वे लिखते रहे और अनेक कविताएँ, गीत, नाटक लिख डाले, कई अनुवाद भी कर डाले. अपने दुखों के बावजूद, समय के साथ उनके अन्दर ऐसा बदलाव आया कि वे अत्यंत मानवीय हो गए और उनके लेखन में उम्मीद, करुणा और जीवन के प्रति प्रेम झलकने लगा. उनकी 117किताबे प्रकाशित हुई जिनमे नाटक व निबंध-संकलन भी थे.


इस कविता का मूल ग्रीक से अंग्रेजी में अनुवाद एडमंड कीली ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

बुधवार, जुलाई 20, 2011

बंजारन बांसुरी

द बॉय विद द विलो फ्लूट, क्रिस्तियाँ स्क्रेडज़विग
The Boy With The Willow Flute, Christian Skredsvig

तुम 
जो पहले कभी गीत सुनाती थे मुझे 
अब भी सुनाओ ना
सुनने दो मुझे 
तुम्हारा वही लम्बा आरोही स्वर  
जियो मेरे साथ
तारा डूब रहा है 
मैं उससे आगे सोच सकता हूँ 
मगर मैं भूल रहा हूँ
सुन पा रही हो मुझे 

अब भी सुन पा रही हो मुझे 
क्या तुम्हारी हवा 
तुम्हें याद रखती है 
ओ सुबह की सांस 
रात का गीत सुबह का गीत 
जो कुछ भी मुझे नहीं पता है 
वो सब मेरे पास है 
मैंने उसमे से कुछ भी नहीं खोया है 

मगर अब मैं ठीक नहीं समझता 
तुमसे पूछना 
कि तुमने यह संगीत कहाँ से सीखा 
कि वह थोडा-सा भी आया कहाँ से 
कभी चीन में शेर होते थे 

जब तक बांसुरी रुक ना जाए
और रोशनी पुरानी न पड़ जाए 
मैं सुनता रहूँगा 



-- डब्ल्यू एस मर्विन


W.S. Merwinडब्ल्यू एस मर्विन ( W S Merwin )अमरीकी कवि हैं व इन दिनों अमरीका के पोएट लॉरीअट भी हैं.उनकी कविताओं, अनुवादों व लेखों के 30 से अधिक संकलन प्रकाशित हो चुके हैं .उन्होंने दूसरी भाषाओँ से अंग्रेजी में बहुत अनुवाद किया है व अपनी कविताओं का भी स्वयं ही दूसरी भाषाओँ में अनुवाद किया है.अपनी कविताओं के लिए उन्हें अन्य सम्मानों सहित पुलित्ज़र प्राइज़ भी मिल चुका है.वे अधिकतर बिना विराम आदि चिन्हों के मुक्त छंद में कविता लिखते हैं.यह कविता उनके संकलन 'द शैडो ऑफ़ सिरिअस ' से है.

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़ 

सोमवार, जुलाई 18, 2011

सर्वनाम

प्रियेर, मार्क शगाल 
Prière, Marc Chagall


खेल-खेल में
वह बनता है रेल. 
वह सीटी बनती है. 
वे निकल पड़ते हैं.

वह बनता है रस्सी. 
वह पेड़ बनती है. 
वे झूल जाते हैं. 

वह बनता है सपना.
वह पंख बनती है.
वे उड़ जाते हैं. 

वह बनता है सेनापति.
वह सेना बनती है.
खेल-खेल में
वे कर देते हैं युद्ध की घोषणा.


-- दून्या मिखाइल 


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 दून्या मिखाइल ( Dunya Mikhail )एक इराकी-अमरीकी कवयित्री हैं. वे अरबी में लिखतीं हैं व उनकी कविताएँ इराक के हालात , युद्ध, युद्ध से प्रभावित जीवन व विस्थापन के बारे में हैं. अरबी में उनकी कविताओं के पांच संकलन प्रकाशित हुए हैं. उनकी अंग्रेजी में अनूदित कविताओं के दो संकलन प्रकाशित हुए हैं, जिन में 'द वार वर्क्स हार्ड' को PEN ट्रांसलेशन अवार्ड मिला व 'डायरी ऑफ़ अ वेव आउटसाइड द सी' को अरब अमेरिकेन बुक अवार्ड मिला है. 2001 में उन्हें यू एन ह्यूमन राइट्स अवार्ड फॉर फ्रीडम ऑफ़ राइटिंग प्राप्त हुआ.
वे 1996 से अमरीका में रहती हैं व अरबी पढ़ाती हैं.
इस कविता का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद इलीज़ाबेथ विन्ज्लो ने किया है.    
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़ 

शनिवार, जुलाई 16, 2011

दुनिया के अंत पर एक गीत

रोज़िज़ एंड बीटल, विन्सेंट वान गोग
Roses And Beetle, Vincent Van Gogh

जिस दिन दुनिया का अंत होता है 
एक मधुमक्खी तिपतिया घास के चक्कर लगाती है, 
एक मछुआरा चमकते जाल को ठीक करता है.
समुद्री जीव ख़ुशी से उछलते हैं समुद्र में,
जहाँ से बारिश का पानी निकलता है 
नन्ही चिड़ियाँ खेलती हैं वहां
और सांप की छाल सुनहरी है जैसी होनी चाहिए हमेशा.

जिस दिन दुनिया का अंत होता है 
औरतें चलती हैं खेतों में अपनी छतरियों तले,
एक पियक्कड़ घास के किनारे निंदासा होता है,
सब्ज़ीवाले चिल्लाते हैं गली में
और एक पीले पाल वाली नाव आ जाती है द्वीप के और पास,
एक वायलिन की आवाज़ ठहर-सी जाती है हवा में 
और ले जाती है तारों भरी रात की ओर.

और जिन्होंने सोचा था की बिजली चमकेगी, 
बादल गरजेंगे, वे निराश हो जाते हैं.
और जिन्हें उम्मीद थी संकेतों की, महादूतों की तुरही की 
उन्हें नहीं लगता कि अंत अब हो रहा है.
जब तक सूरज और चाँद ऊपर हैं,
जब तक भौंरा गुलाब के पास जाता है 
जब तक गुलाबी-से बच्चे पैदा हो रहे हैं
किसी को नहीं लगता की अंत अब हो रहा है.

केवल एक पके बालों वाला बूढ़ा, 
जो पैगम्बर हो सकता था, मगर पैगम्बर नहीं है,
क्योंकि वह कुछ अधिक ही व्यस्त है,
अपने टमाटर के पौधे बांधते हुए दोहराता है:
दुनिया का और कोई अंत नहीं होगा,
और कोई अंत नहीं होगा दुनिया का.



--चेस्वाफ़ मीवोश 



चेस्वाफ़ मीवोश (Czeslaw Milosz) पोलैंड के प्रसिद्द कवि, लेखक व अनुवादक थे. उनका जन्म लिथुएनिया में हुआ था और वे पांच भाषाएँ जानते थे -- पोलिश, लिथुएनिअन,रशियन, अंग्रेजी व फ्रेंच. द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात,1951 में उन्होंने पोलैंड छोड़ फ्रांस में आश्रय लिया, और 1970 में अमरीका चले गए. वहां वे यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया में पोलिश साहित्य के प्रोफ़ेसर रहे. उनके 40 से भी अधिक कविताओं व लेखों के संकलन प्रकाशित हुए हैं व कई भाषाओँ में अनूदित किये गए हैं. अन्य कई सम्मानों सहित उन्हें 1980 में नोबेल प्राइज़ भी मिल चुका है.
इस कविता का मूल पोलिश से अंग्रेजी में अनुवाद एंथनी मीवोश ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़ 

गुरुवार, जुलाई 14, 2011

खुद से बातें

सेल्फ पोर्ट्रेट इन फ्रंट ऑफ़ द ईज़ल, विन्सेंट वान गोग
Self Portrait In Front Of The Easel, Vincent Van Gogh

ऐसा भी होता है 
कि कोई केवल अपने लिए 
बोलता है कुछ शब्द
अकेले इस अजीब धरती पर 
और फिर वह छोटा सफ़ेद फूल
वह कंकड़ जिसके जैसे बहुत
गुज़र चुके हैं पहले भी 
वह ठूंठ-सी टहनी 
एक बार फिर
मिला हुआ पाते हैं
एक-दूसरे से खुद को 
उस द्वार के सामने
जिसे कोई खोलता है धीरे-से
मिटटी के घर में प्रवेश के लिए 
जबकि कुर्सियाँ, मेज़, अलमारी
दमकते हैं वैभव के सूर्य में.


-- यौं फोलें 


 
यौं फोलें ( Jean Follain ) फ्रांस के कवि, लेखक व मजिस्ट्रेट थे और फ्रेंच के महत्वपूर्ण कवि माने जाते हैं. बहुत समय तक वे दोहरी ज़िन्दगी जीते रहे, एक ओर सरकारी अफसर और दूसरी ओर कवि जो साहित्यिक गोष्ठियों में जाता था, पत्रिकाओं में लेख लिखता था. फिर उन्होंने एक दिन नौकरी छोड़ दी और अनेक देशों का भ्रमण किया. ऐसा लगता था मानो वे नौकरी में गवाएँसाल वापिस अर्जित करना चाहते थे. उनके अनेक कविता व गद्य संकलन प्रकाशित हुए व उनका दूसरी भाषाओँ में अनुवाद भी हुआ. उनकी कविताएँ छोटी, रहस्यमय और लगभग चीनी-जापानी बौद्ध कविताओं-सी लगती है.
इस कविता का मूल फ्रेंच से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

मंगलवार, जुलाई 12, 2011

एक छोटे कैफे-सा...ऐसा है प्यार

द नाईट कैफे इन द प्लास लामारतीन इन आर्ल, विन्सेंट वान गोग 
The Night Cafe In The Place Lamartine In Arles, Vincent Van Gogh

अजनबियों की गली में 
एक छोटे कैफे-सा -- ऐसा है प्यार
...सब के लिए दरवाज़े खोले.
ऐसा कैफे जो मौसम के साथ-साथ
बढ़ता है, घटता है :
अगर खूब बारिश होती है 
तो ग्राहक बढ़ जाते हैं,
मौसम ठीक होता है 
तो कम होते हैं, सुस्त हो जाते हैं...
मैं यहाँ हूँ, अजनबी,
एक कोने में बैठा हुआ.
( तुम्हारी आँखों का रंग कैसा है? 
तुम्हारा नाम क्या है?
मैं यहाँ तुम्हारे इंतज़ार में बैठा हूँ,
तुम पास से गुज़रोगी तो तुम्हें कैसे पुकारूं ?)
एक छोटा कैफे, ऐसा ही है प्यार.
मैं वाइन के दो प्याले मंगवाता हूँ 
और तुम्हारी और अपनी सेहत का जाम पीता हूँ.
मैं दो टोपियाँ लिए हूँ
और एक छतरी. बारिश हो रही है.
अब और भी तेज़ हो रही है बारिश, 
और तुम यहाँ नहीं आती.
आखिर में अपनेआप से कहता हूँ : 
शायद वह, मैं जिसका इंतज़ार कर रहा था 
मेरा इंतज़ार कर रही थी, 
या किसी और का इंतज़ार कर रही थी,
या हम दोनों का इंतज़ार कर रही थी, 
और न उस को ढूंढ पाई, न मुझ को.
वह कहती : यहाँ इंतज़ार कर रही हूँ तुम्हारा.
( तुम्हारी आँखों का रंग कैसा है? तुम्हारा नाम क्या है?
कैसी वाइन पसंद है तुम्हें? तुम पास से गुजारोगे
तो तुम्हे कैसे पुकारूं? )
एक छोटा कैफे, ऐसा ही है प्यार...


-- महमूद दरविश


 महमूद दरविश ( Mahmoud Darwish )एक फिलिस्तीनी कवि व लेखक थे जो फिलिस्तीन के राष्टीय कवि भी माने जाते थे. उनकी कविताओं में अक्सर अपने देश से बेदखली का दुःख प्रतिबिंबित होता है. उनके तीस कविता संकलन व आठ किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. अपने लेखन के लिए, जिसका बीस भाषाओँ में अनुवाद भी हो चुका है, उन्हें असंख्य अवार्ड मिले हैं. फिलिस्तीनी लोगों के 'वतन' के लिए संघर्ष के साथ उनकी कविताओं का गहरा नाता है. जबकि उनकी बाद की कविताएँ मुक्त छंद में  लिखी हुईं और कुछ हद तक व्यक्तिगत हैं, वे राजनीती से कभी दूर नहीं रह पाए.
इस कविता का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद मोहम्मद शाईन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

रविवार, जुलाई 10, 2011

कल भोर होते ही

ऐवन्यू ऑफ़ पोप्लर्ज़ एट सनसेट, विन्सेंट वान गोग
Avenue Of Poplars At Sunset, Vincent Van Gogh 
कल, भोर होते ही, 
जिस घड़ी सब उजला होने लगता है, 
मैं निकल पडूंगा. 
देखो, मैं जानता हूँ की तुम मेरी राह देख रही हो.
मैं जंगल से गुज़रुंगा, मैं पर्वत पार करूँगा
अब मैं तुमसे और दूर नहीं रह पाऊंगा.


आँखें अपनी सोच पर स्थिर किए 
मैं चलता रहूँगा,
बिना बाहर कुछ देखे, बिना कोई आवाज़ सुने,
अकेला, अपरिचित, पीठ झुकी, हाथ बंधे हुए,
उदास, 
और दिन मेरे लिए रात जैसा ही होगा.

ढलती सांझ का सोना नहीं देख पाऊंगा मैं,
न ही दूर आरफ्लर शहर पर गिरते धुंध के पर्दों को,
और जब मैं पहुँच जाऊँगा, 
तो हरे हॉली के पत्ते और फूलती हेदर
रख दूंगा तुम्हारी कब्र पर.


-- विक्टर ह्यूगो 





विक्टर ह्यूगो ( Victor Hugo ) उन्नीसवीं सदी के फ्रांसीसी कवि, नाटककार, उपन्यासकार व निबंधकार थे. हालाँकि वे कवि के रूप में अधिक जाने जाते हैं, 20 वर्ष की आयु में ही उनका पहला कविता संकलन प्रकाशित हो चुका था, मगर उनके उपन्यासों का भी साहित्य में अपना ही स्थान है. और किसी लेखक ने अपने जीवन काल में शायद ही इतना लेखन किया हो जितना विक्टर ह्यूगो ने किया -- 22 से अधिक कविता संकलन; 8 उपन्यास, जिसमे से 'ले मिज़ेराब्ल' और 'द हंचबैक ऑफ़ नोत्र दाम' खूब प्रसिद्द हुए;10 नाटक जो उस समय के बदलते राजनैतिक माहौल पर केन्द्रित थे; और इस के इलावा अनेक निबंध व लेख. यह कविता उनके संकलन 'ले कोंतोंपलासियों' से है. यह कविता उन्होंने अपने बेटी लिओपोलडीन के लिए लिखी थी जिसका 19 वर्ष की आयु में देहांत हो गया था.
इस कविता का मूल फ्रेंच से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

शुक्रवार, जुलाई 08, 2011

आज सवेरे

ए विंड बीटन ट्री, विन्सेंट वान गोग 
A Wind beaten Tree, Vincent Van Gogh

आज बहुत सवेरे मैं घर से निकल पड़ा 
क्योंकि मैं उस से भी जल्दी उठ बैठा था, 
और कुछ करने का मन भी नहीं था.

मैं नहीं जानता था किस ओर जाऊं,
मगर हवा बहुत ज़ोर से एक ओर को चल रही थी,
और जिस ओर वह धकेलती गयी, मैं चलता गया.

हमेशा ऐसा ही रहा है मेरा जीवन,
और हमेशा ऐसा ही रहे, यही चाहता हूँ --
मैं उधर ही जाऊं जिधर हवा मुझे बहा ले जाए
और कुछ सोचने की कभी आवश्यकता न हो.


--  फेर्नान्दो पेस्सोआ ( अल्बेर्तो काइरो )



 फेर्नान्दो पेस्सोआ ( Fernando Pessoa )20 वीं सदी के आरम्भ के पुर्तगाली कवि, लेखक, समीक्षक व अनुवादक थे और दुनिया के महानतम कवियों में उनकी गिनती होती है. यह कविता उन्होंने अल्बेर्तो काइरो ( Alberto Caeiro )के झूठे नाम से लिखी थी. अपने पूरे जीवन काल में उन्होंने 72 झूठे नाम या हेट्रोनिम् की आड़ से सृजन किया, जिन में से तीन प्रमुख थे. और हैरानी की बात तो ये है की इन सभी हेट्रोनिम् या झूठे नामों की अपनी अलग जीवनी, स्वभाव, दर्शन, रूप-रंग व लेखन शैली थी. पेस्सोआ के जीतेजी उनकी एक ही किताब प्रकाशित हुई. मगर उनकी मृत्यु के बाद, एक पुराने ट्रंक से उनके द्वारा लिखे 25000 से भी अधिक पन्ने मिले, जो उन्होंने अपने अलग-अलग नामों से लिखे थे. पुर्तगाल की नैशनल लाइब्ररी में उन पन्नों की एडिटिंग का काम आज तक जारी है. यह कविता उनके संकलन 'अनकलेक्टिड पोइम्ज़ ' से है.
इस कविता का मूल पुर्तगाली से अंग्रेजी में अनुवाद रिचर्ड ज़ेनिथ ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़             

बुधवार, जुलाई 06, 2011

चित्रकारी

द स्कूलबॉय, विन्सेंट वान गोग
The Schoolboy, Vincent Van Gogh 

अपना रंगों का डिब्बा मेरे सामने रख
मेरा बेटा मुझ से एक पंछी बनाने को कहता है.
स्लेटी रंग में ब्रश डुबोकर मैं बनाता हूँ
छड़ों और तालों वाला एक चौकोर.
उसकी आँखों में आश्चर्य भर आता है : 
"...मगर ये तो जेल है, पिताजी,
आप को क्या पंछी बनाना नहीं आता? "
और मैं उससे कहता हूँ : 
बेटा, माफ़ कर दो मुझे,
मैं पंछियों का आकार ही भूल चुका हूँ.

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मेरे बिस्तर पर सिरहाने बैठा मेरा बेटा 
मुझे कविता सुनाने को कहता है.
एक आंसू मेरी आँख से तकिये पर गिरता है.
मेरा बेटा उसे चाट लेता है, और आश्चर्यचकित हो कहता है : 
" मगर यह तो आंसू है, पिताजी, कविता नहीं! "
और मैं उससे कहता हूँ :
" मेरे बच्चे, जब तुम बड़े हो जाओगे 
और अरबी कविता का दीवान पढ़ोगे 
तो तुम पाओगे कि शब्द और आंसू जुड़वा ही हैं 
और अरबी कविता और कुछ नहीं
लिखती उँगलियों का रोया हुआ आंसू है.

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मेरा बेटा अपने पेन और अपना क्रेयान का डिब्बा
मेरे सामने रखता है 
और मुझ से अपने लिए एक वतन बनाने को कहता है.
मेरे हाथों में ब्रश कांपता है, 
और रोते-रोते मैं ढह-सा जाता हूँ.


-- निज़ार क़ब्बानी 


 निज़ार क़ब्बानी ( Nizar Qabbani )सिरिया से हैं व अरबी भाषा के कवियों में उनका विशिष्ट स्थान है. उनकी सीधी सहज कविताएँ अधिकतर प्यार के बारे में हैं. जब उनसे पूछा गया कि क्या वे क्रन्तिकारी हैं, तो उन्होंने कहा -- अरबी दुनिया में प्यार नज़रबंद है, मैं उसे आज़ाद करना चाहता हूँ. उन्होंने 16 की उम्र से कविताएँ लिखनी शुरू कर दी थीं, और उनके 50 से अधिक कविता-संग्रह छप चुके हैं. उनकी कविताओं को कई प्रसिद्ध अरबी गायकों ने गया है, जिन में मिस्र की बेहतरीन गायिका उम्म कुल्थुम भी हैं, जिनके गीत सुनने के लिए लोग उमड़ पड़ते थे.
इस कविता का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद लेना जाय्युसी और नाओमी शिहाब नाए ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़ 

सोमवार, जुलाई 04, 2011

मौन

लैंडस्केप एट डस्क, विन्सेंट वान गोग
Landscape At Dusk, Vincent Van Gogh 
मौन हमेशा यहाँ है और हर जगह है ;
कई बार बस हम उसे और अधिक,
और साफ़-साफ़ सुन पाते हैं :
धुंध घास-भरे मैदान को ढक लेती है,
बाड़े का द्वार खुला है,
एक पंछी गा रहा है वहां पर, 
एक सफ़ेद पतंगा लगातार मंडरा रहा है 
एल्म पेड़ की टहनी के आस-पास,
और वह टहनी, सांध्य-आकाश की पृष्ठभूमि पर,
बहुत धीरे-धीरे अभी भी लहरा रही है.
सांझ हमसे सब नाम और चेहरे छीन लेती है,
केवल उजाले और अँधेरे के बीच का अंतर रह जाता है.
यह बीच-गर्मियों की रात का दिल :
मेज़ पर रखी पुरानी घड़ी 
अचानक इतनी जोर से टिकटिक कर रही है. 


-- यान काप्लिन्स्की


Author: Estonian Literary Magazine





यान काप्लिन्स्की ( Jaan Kaplinski )एस्टोनिया के कवि, भाषाविद व दार्शनिक हैं व यूरोप के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं. वे अपने स्वतंत्र विचारों व वैश्विक सरोकारों के लिए जाने जाते हैं. उनके कई कविता-संग्रह, कहानियां, लेख व निबंध छप चुके हैं. उन्होंने कई भाषाओँ से कई भाषाओँ में अनुवाद किये है व उनके स्वयं के लेखन का भी कई भाषाओँ में अनुवाद हुआ है. यह कविता उनके संकलन 'ईवनिंग ब्रिनग्ज़ एवरीथिंग बैक ' से है.
इस कविता का मूल एस्टोनियन से अंग्रेजी में अनुवाद फियोना सैम्प्सन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

शनिवार, जुलाई 02, 2011

पुकार और जवाब

द इन्नर वाइस, ओग्यूस्त रोदें
The Inner Voice, Auguste Rodin

एक बात बताओ, आजकल हम अपनी आवाज़ क्यों नहीं उठाते,
और जो हो रहा है उस का विरोध क्यों नहीं करते.
क्या तुमने ध्यान दिया है कि इराक के लिए मंसूबे बांधे जा रहे हैं, 
और ध्रुवों की बर्फ पिघलती जा रही है.

मैं अपने आप से कहता हूँ : " चलो, आवाज़ उठाओ.
बड़े होने का क्या फायदा अगर तुम्हारे पास आवाज़ ही नहीं है?
पुकारो!  देखो कौन जवाब देता है !
ये पुकार और जवाब का खेल है!"

हमें अपने फरिश्तों तक पहुँचने के लिए 
बहुत जोर से आवाज़ लगानी होगी 
वे बहरे हैं, वे युद्ध के समय, 
चुप्पी के भरे मटकों में छुपे बैठे हैं.

क्या हमने इतने युद्धों के लिए हामी भर दी थी 
कि हम चुप्पी से छूट नहीं पा रहे? 
अगर आवाज़ नहीं उठाएंगे तो दूसरों को
( जो हम स्वयं ही हैं ) घर लूटने देंगे हम.

आखिर कैसे हमने इतने पुकारने वालों को सुना -- नेरुदा,
आख्मतोवा, थोरो , फ्रेडरिक डगलस -- और अब हम 
छोटी झाड़ियों में बैठी गौरैया की तरह चुप हैं?

कई विद्वानों ने कहा है कि हमारा जीवन सात ही दिनों का है.
अब हफ्ते का कौन-सा दिन है? क्या गुरूवार हो गया?
जल्दी करो. अभी आवाज़ उठाओ! 
रविवार की रात आने ही वाली है.


-- रोबर्ट ब्लाए



 रोबर्ट ब्लाए ( Robert Bly ) अमरीकी कवि, लेखक व अनुवादक हैं. 36 वर्ष की आयु में उनका पहला कविता संकलन प्रकाशित हुआ, मगर उस से पहले साहित्य पढ़ते समय उन्हें फुलब्राईट स्कॉलरशिप मिला और वे नोर्वे जाकर वहां के कवियों की कविताओं का अनुवाद अंग्रेजी में करने लगे. वहीं पर वे दूसरी भाषाओँ के अच्छे कवियों से दो-चार हुए - नेरुदा, अंतोनियो मचादो, रूमी, हाफिज़, कबीर, मीराबाई इत्यादि. अमरीका में लोग इन कवियों को नहीं जानते थे. उनके अनेक कविता संग्रह प्रकाशित हुए और उन्होंने खूब अनुवाद भी किया है. अमरीका के वे लोकप्रिय कवि हैं और यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिनेसोटा में उनके लिखे 80,000 पन्नों की आर्काइव है, जो उनका लगभग पचास वर्षों का काम है.

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़