बुधवार, फ़रवरी 01, 2012

बस एक ही चीज़ खटकती है...

द थर्ड ड्रंकर्ड , अलेक्स्ज़ान्द्र बनोआ
The Third Drunkard, Alexandre Benois
मैं रोज़ एक कविता लिखता हूँ 
हालाँकि मुझे लगता नहीं 
कि इन शब्दों के समूह को 
कविता कहा भी जाना चाहिए.
कुछ भी कठिन नहीं है, खासकर अब,
जब वसंत है तारत्यु शहर में,
और सबकुछ पलट रहा है अपनी काया:
पार्क, लान, टहनियाँ, कलियाँ 
और शहर के ऊपर बादल, 
यहाँ तक कि आकाश और सितारे भी.
काश होती मेरे पास इतनी आँखें, कान, समय
समेटने के लिए इस सौंदर्य को, 
जो भँवर की तरह खींच लेता है हमें भीतर
ढँक देता है हर चीज़ को 
आशाओं की काव्यात्मक चादर से 
जिस में बस एक ही चीज़ खटकती है :
बस स्टैंड पर बैठा वो पागल 
अपने घायल मैले पैरों से कीचड़-सने जूते उतारता हुआ,
उसकी लाठी और ऊनी टोपी उसके बगल में रखी हैं;
वही टोपी जो तब भी थी उसके सर पर 
जब तुम्हारी टैक्सी गुजरी थी पास से
जब तुमने उसे खड़ा देखा था उस दिन 
इसी बस स्टॉप पर रात के तीन बजे  
और ड्राईवर ने कहा था, 
"इस गधे के हाथ फिर कहीं से दारु लग गयी है."


-- यान काप्लिन्स्की


Author: Estonian Literary Magazine






यान काप्लिन्स्की ( Jaan Kaplinski )एस्टोनिया के कवि, भाषाविद व दार्शनिक हैं व यूरोप के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं. वे अपने स्वतंत्र विचारों व वैश्विक सरोकारों के लिए जाने जाते हैं. उनके कई कविता-संग्रह, कहानियां, लेख व निबंध प्रकाशित हो चुके हैं. उन्होंने कई भाषाओँ से कई भाषाओँ में अनुवाद किये है व उनके स्वयं के लेखन का भी कई भाषाओँ में अनुवाद हुआ है. यह कविता उनके संकलन 'ईवनिंग ब्रिनग्ज़ एवरीथिंग बैक ' से है.
इस कविता का मूल एस्टोनियन से अंग्रेजी में अनुवाद फियोना सैम्प्सन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़