शुक्रवार, अगस्त 19, 2011

कितनी बड़ी है यह उदासी

लाइंग काओ, विन्सेंट वान गोग
Lying Cow, Vincent Van Gogh

कितनी बड़ी है यह उदासी और 
यह कड़वाहट जो झोंक देती है 
हमारी नन्ही ज़िंदगियों को 
एक कोलाहल में !
ऐसा कितनी बार होता है 
कि दुर्भाग्य 
क्रूरता से हमें कुचल डालता है!
सुखी है वह जानवर, स्वयं से अनामित, 
जो हरे-हरे खेतों में चरता है,
और ऐसे प्रवेश करता है मृत्यु में 
जैसे कि वह उसका घर हो;
या वह विद्वान जो, अध्ययन में डूबा,
अपने निरर्थक सन्यासी जीवन को 
उठा लेता है हमारे जीवन से बहुत ऊपर,
धुंए की तरह, 
जो अपने विघटित होते हाथों को 
उठा देता है एक ऐसे स्वर्ग की ओर
जिसका अस्तित्व ही नहीं है.


-- फेर्नान्दो पेस्सोआ ( रिकार्दो रेइस)



 फेर्नान्दो पेस्सोआ ( Fernando Pessoa )20 वीं सदी के आरम्भ के पुर्तगाली कवि, लेखक, समीक्षक व अनुवादक थे और दुनिया के महानतम कवियों में उनकी गिनती होती है. यह कविता उन्होंने रिकार्दो रेइस ( Ricardo Reis )के झूठे नाम से लिखी थी. अपने पूरे जीवन काल में उन्होंने 72 झूठे नामों या हेट्रोनिम् की आड़ से सृजन किया, जिन में से तीन प्रमुख थे. और हैरानी की बात तो यह है की इन सभी हेट्रोनिम् या झूठे नामों की अपनी अलग  जीवनी, दर्शन, स्वभाव, रूप-रंग व लेखन शैली थी. पेस्सोआ  के जीतेजी उनकी एक ही किताब प्रकाशित हुई. मगर उनकी मृत्यु के बाद, एक पुराने ट्रंक से उनके द्वारा लिखे 25000 से भी अधिक पन्ने  मिले, जो उन्होंने अपने अलग-अलग नामों से लिखे थे. पुर्तगाल की नैशनल लाइब्रेरी में इनके सम्पादन का काम आज भी जारी है. यह कविता उनके संकलन 'ओड्ज़' से है.
इस कविता का मूल पोर्त्युगीज़ से अंग्रेजी में अनुवाद रिचर्ड ज़ेनिथ ने किया है.

इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़