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सेल्फ-पोर्ट्रेट इन फेल्ट हैट, पॉल सेज़ान Self-Portrait in Felt Hat, Paul Cezanne |
जिस दिन उसकी प्रियतमा की मृत्यु हुई
उसने बूढ़े होने का फैसला कर लिया
और कर लिया स्वयं को बंद
अकेले, खाली घर के अन्दर
केवल उसकी यादों के साथ
और उस बड़े उजले आईने के साथ
जिस में देख कर वह अपने बाल बनाती थी.
इस सोने के बड़े से खंड को
वह एक लोभी की तरह सहेजता-बटोरता था,
सोचता था, कि कम-से-कम यहाँ तो
वह कैद कर लेगा बीते दिनों को,
सुरक्षित रख लेगा इस एक चीज़ को.
मगर पहली बरसी के आस-पास,
वह उसकी आँखों के बारे में सोचने लगा
और घबरा गया : वे भूरी थीं या काली,
या धूसर? हरी? हे भगवान! कह नहीं सकता....
वसंत की एक सुबह, उसके भीतर कुछ दरक गया;
अपने दोहरे दुःख को सलीब की तरह कंधे पर उठाये,
उसने बाहर का दरवाज़ा बंद किया, सड़क पर आया
और अभी दस गज भी न चला था कि एक अँधेरे प्रांगण से
उसे मिली एक जोड़ी आँखों की झलक. अपना हैट
नीचे खींच वह आगे बढ़ गया...हाँ, वे ऐसे ही थीं; ऐसी ही...
उसने बूढ़े होने का फैसला कर लिया
और कर लिया स्वयं को बंद
अकेले, खाली घर के अन्दर
केवल उसकी यादों के साथ
और उस बड़े उजले आईने के साथ
जिस में देख कर वह अपने बाल बनाती थी.
इस सोने के बड़े से खंड को
वह एक लोभी की तरह सहेजता-बटोरता था,
सोचता था, कि कम-से-कम यहाँ तो
वह कैद कर लेगा बीते दिनों को,
सुरक्षित रख लेगा इस एक चीज़ को.
मगर पहली बरसी के आस-पास,
वह उसकी आँखों के बारे में सोचने लगा
और घबरा गया : वे भूरी थीं या काली,
या धूसर? हरी? हे भगवान! कह नहीं सकता....
वसंत की एक सुबह, उसके भीतर कुछ दरक गया;
अपने दोहरे दुःख को सलीब की तरह कंधे पर उठाये,
उसने बाहर का दरवाज़ा बंद किया, सड़क पर आया
और अभी दस गज भी न चला था कि एक अँधेरे प्रांगण से
उसे मिली एक जोड़ी आँखों की झलक. अपना हैट
नीचे खींच वह आगे बढ़ गया...हाँ, वे ऐसे ही थीं; ऐसी ही...
-- डान पेटरसन
इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़