सोमवार, अगस्त 01, 2011

शाम के झुटपुटे में...

लैंडस्केप एट सनसेट, विन्सेंट वान गोग
Landscape At Sunset, Vincent Van Gogh 

शाम के झुटपुटे में ही आँखें सचमुच देखने लगती हैं.
इस से पहले कि रात उन्हें बुझा दे, फूलों के रंग 
चमकीले और सुन्दर होने लगते हैं: 
कारनेशन, पीले गुलाब, मैदानी फूल और बटरकप.
हवा थम गयी है और आकाश 
-- वह फीकी, लगभग अदृश्य पृष्ठभूमि 
हमारे सब कार्यकलापों की, आने-जाने की --
अचानक ही यहाँ है, 
पेड़ों के शिखरों और बिजली के खम्बों के ठीक ऊपर,
पत्तियों में से और घर के ऊपर से 
अपनी पूरी गहराई और नीलेपन में झिलमिलाता हुआ.
उपभवन के पीछे, सांझ का तारा शुक्र दिखाई देता है;
और कुँए की जगत की दाहिनी ओर बृहस्पति :
कभी दोनों देवता थे, अब दो तारे हैं.


-- यान काप्लिन्स्की


Author: Estonian Literary Magazine





यान काप्लिन्स्की ( Jaan Kaplinski )एस्टोनिया के कवि, भाषाविद व दार्शनिक हैं व यूरोप के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं. वे अपने स्वतंत्र विचारों व वैश्विक सरोकारों के लिए जाने जाते हैं. उनके कई कविता-संग्रह, कहानियां, लेख व निबंध प्रकाशित हो चुके हैं. उन्होंने कई भाषाओँ से कई भाषाओँ में अनुवाद किये है व उनके स्वयं के लेखन का भी कई भाषाओँ में अनुवाद हुआ है. यह कविता उनके संकलन 'ईवनिंग ब्रिनग्ज़ एवरीथिंग बैक ' से है.
इस कविता का मूल एस्टोनियन से अंग्रेजी में अनुवाद फियोना सैम्प्सन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़