सेल्फ पोर्ट्रेट, मार्क शगाल Self Portrait, Marc Chagall |
ठण्ड के मारे खोपड़ी झनझना रही है.
कोई बेधड़क होकर मुंह नहीं खोलता.
तुम्हारे जूते की ऐड़ी की तरह
समय मुझे घिस देता है.
जीवन पा लेता है विजय जीवन पर.
आवाज़ मंद होती जाती है.
कुछ हमेशा खोया ही रहता है.
उसे याद करने की फुर्सत बिलकुल नहीं है.
तुम जानते हो, पहले सब बेहतर था.
लेकिन कोई तुलना नहीं की जा सकती
कि पहले खून कैसे फुसफुसाता था
और अब कैसे फुसफुसाता है.
साफ़ है कि कोई तो प्रयोजन है
जो हिला रहा है इन होंठों को.
पेड़ की फुनगी खिलखिलाती है
और खेल जाती है
कुल्हाड़ियों के दिन से.
-- ओसिप मंदेलश्ताम
इस कविता का मूल रशियन से अंग्रेजी में अनुवाद क्लेरन्स ब्राउन व डब्ल्यू एस मर्विन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़