मंगलवार, अप्रैल 23, 2013

पल

रॉन माउंटेन, टी सी स्टील
Roan Mountain, T C Steele

मैं हरी होती पहाड़ी की ढलान पर चढ़ती हूँ.
घास और घास में नन्हे-नन्हे फूल,
जैसे बच्चों के बनाये चित्र में होते हैं.
धुंध-भरा आकाश नीला होना शुरू हो गया है.
अन्य पहाड़ियों का दृश्य निःशब्दता में 
प्रकट होता है.

जैसे कि कभी कोई कैम्ब्रियन* या सिल्युरियन*युग 
था ही नहीं,
बड़ी चट्टानों से कर्कश स्वर में बोलते पत्थर,
औंधे पड़े वितल,
धधकती हुई रातें नहीं 
और अन्धकार के बादलों में दिन.

जैसे कि असाध्य ज्वरों में जलते,
बर्फीली सिहरन लिए  
मैदान यहाँ तक धक्का लगाते नहीं आये थे.

जैसे कि अपने क्षितिजों के किनारों को कतरते
समुद्र कहीं और ही खौले थे.

स्थानीय समय के अनुसार साढ़े नौ बजे हैं.
सब कुछ यथास्थान है और विनम्र एक्य में है. 
घाटी में छोटी नदी निभा रही है छोटी ही नदी की भूमिका.
एक पथ है एक पथ की भूमिका में हमेशा से सदा तक.
जंगल जंगल के ही भेस में है, अनंत जीवंत,
और उन सब के ऊपर उड़ते पंछी उड़ते ही पंछी हैं.

जहाँ तक दृष्टि जा सकती है वहां तक इस पल का साम्राज्य है.
ऐसा भौतिक पल जिसे ठहरे रहने का आमंत्रण है. 


-- वीस्वावा शिम्बोर्स्का



 वीस्वावा शिम्बोर्स्का ( Wislawa Szymborska ) पोलैंड की कवयित्री, निबंधकार व अनुवादक हैं. उनकी युवावस्था लगभग संघर्ष में ही बीती -- द्वितीय विश्व-युद्ध और उसके पोलैंड पर दुष्प्रभाव, कम पैसे होने की वजह से पढाई छोड़ देना, छुट-पुट नौकरियां, पोलैंड में साम्यवाद का लम्बा दौर. इस सब के बावजूद उनकी साहित्यिक व कलात्मक गतिविधियाँ जारी रही. उन्होंने अख़बारों व पत्रिकाओं में मूलतः साहित्य  के विषय पर खूब लिखा. उन्होंने बहुत प्रचुरता में नहीं लिखा. उनकी केवल २५० कविताएँ प्रकाशित हुईं. लेकिन उनका काम इतना सराहनीय था की पूरे विश्व में पहचानी जाने लगी. 1996 में उन्हें नोबेल पुरूस्कार से सम्मानित किया गया. उनकी कविताओं व निबंधों का अनेक भाषाओँ में अनुवाद किया गया है. 
इस कविता का मूल पोलिश से अंग्रेजी में अनुवाद स्तानिस्वाव बरंजाक व  क्लेर कावानाह ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़