द विंडो, मार्क शगाल The Window, Marc Chagall |
इतने समय बाद अभी भी
मुझे खोजना पड़ता है कभी-कभी
"पाना" शब्द शब्दकोष में.
मैंने पाई उसकी गहरी आकृष्ट निगाहें.
मीठी बोलों की बारिश में एक सेम की बेल पनपती है.
बताओ क्या सोचती हो तुम? -- मैं सुन रहा हूँ.
कहानी ने अपने बीस पत्ते फड़फड़ा डाले.
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एक बार मेरी अध्यापिका ने
मुझे हंसने का दंड दिया
एक ऊंची मेज़ पर बिठा दिया.
उन्होंने सोचा
कि मुझे छांट के रख देंगी
क्लास के बच्चों की निगाहें.
मगर वे तो कुछ और ही कह रही थीं.
हम भी हँसते अगर हमें आता हँसना.
मैंने अपनी आँखें खिड़की के बाहर
आकाश की पूर्ण रेखा पर गड़ा दी.
वहीँ तो जा रही थी मैं.
नाओमी शिहाब नाए एक फिलिस्तीनी-अमरीकी कवयित्री, गीतकार व उपन्यासकार हैं. वे बचपन से ही कविताएँ लिखती आ रहीं हैं. फिलिस्तीनी पिता और अमरीकी माँ की बेटी, वे अपनी कविताओं में अलग-अलग संस्कृतियों की समानता-असमानता खोजती हैं. वे आम जीवन व सड़क पर चलते लोगों में कविता खोजती हैं. उनके 7 कविता संकलन और एक उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं. अपने लेखन के लिए उन्हें अनेक अवार्ड व सम्मान प्राप्त हुए हैं. उन्होंने अनेक कविता संग्रहों का सम्पादन भी किया है.
इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़