गुरुवार, फ़रवरी 27, 2014

अनुपस्थिति

स्केच, ओगयूस्त रोदें
Sketch, Auguste Rodin

तुमसे बात करता हूँ मैं शहरों के पार 
मैदानों के पार तुमसे बात करता हूँ मैं 
मेरे होंठ तुम्हारे तकिये पर हैं 
दीवार की दोनों सतहें किये हुए हैं अपना मुख 
मेरी आवाज़ की ओर, आवाज़ जो पहचानती है तुम्हें 
मैं तुम से बात करता हूँ शाश्वतता की 

ओ शहरों, शहरों की स्मृतियों 
हमारी चाहों में लिपटे शहरों 
समय से पहले बस चुके शहरों 
बसने में देर करते शहरों 
जिनसे छीन लिए गए हैं सभी राजमिस्त्री, 
सभी विचारक, सभी भटकती आत्माएँ 

देहात का नियम हरियाली है 
सजीव जीवित जीवंत 
आकाश का गेहूं हमारी धरती पर 
पोषित करता है मेरी आवाज़ को 
मैं स्वप्न देखता हूँ और रोता हूँ 
मैं हँसता हूँ और स्वप्न देखता हूँ 
लपटों के बीच धूप के गुच्छों के बीच 
और मेरी देह पर बिछा जाती है तुम्हारी देह 
अपने उज्ज्वल आईने की चादर  


-- पॉल एलुआर














पॉल एलुआर 
(Paul Éluard)फ़्रांसिसी कवि थे व स्यूरेअलीज्म के संस्थापकों में से एक थे. 16 साल की आयु में जब उन्हें टी.बी होने पर स्विटज़र्लैंड के एक सैनिटोरियम में स्वास्थ्य लाभ के लिए भेजा गया, उस समय उनका कविता में रुझान हुआ. उनका पहला कविता संकलन उनके युद्ध में हुए अनुभवों के बाद लिखा गया. उनकी लगभग 70 किताबे प्रकाशित हुई जिनमे, कविता संग्रह व उनके साहित्यिक और राजनैतिक विचार भी हैं. यह कविता उनके 1963 में प्रकाशित संकलन 'देरनिये पोएम दामूर' से है.

इस कविता का मूल फ्रेंच से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़         

गुरुवार, फ़रवरी 20, 2014

आज

ब्लूमिंग फ्लार्ज़ विद गार्डन फेंस,
कोलोमान मोज़र्
Blooming Flowers with Garden Fence,
Koloman Moser
क्या कभी वसंत में ऐसा अनोखा दिन भी हुआ है,
रुक रुक कर चलती गुनगुनी हवा से इतना उल्लासित 

कि आप का मन घर की सभी 
खिड़कियाँ खोल देना चाहे 

और तोते के पिंजरे की चिटकनी सरका,  
दरवाज़े को कब्ज़े से उखाड़ देना चाहे,

ऐसा दिन, जब ईंटों-जड़े संकरे रास्तों वाले,
 पिओनी फूलों से भरे-भरे बागीचे 

इतने साफ़ झलकते हैं चटक धूप में 
कि मन करता है 

हथौड़ा लेकर बैठक की मेज़ 
पर रखे कांच के पेपर्वेट को तोड़ डालें,

उसमें बसने वालों को उनके 
बर्फ से ढके घर से आज़ाद कर दें 

ताकि एक-दूसरे का हाथ पकड़े,
चौंधियायी आँखें लिए
वे बाहर कदम रख सकें 

इस नीले-सफ़ेद बड़े गुम्बद तले,
आह, ऐसा ही दिन है आज.


-- बिली कॉलिन्ज़ 




 बिली कॉलिन्ज़ (Billy Collins) अमरीकी कवि है जो 2001 से 2003 तक अमरीका के पोएट लॉरिएट रह चुके हैं. वे न्यू यॉर्क की सिटी यूनिवर्सिटी के लेहमन कॉलेज के डिस्टिंग्विश्ड प्रोफेसर व फ्लोरिडा के विंटर पार्क इंस्टिट्यूट के सीनियर डिस्टिंग्विश्ड फेलो भी हैं. 1992 में उन्हें न्यू यॉर्क पब्लिक लाइब्रेरी का लिटरेरी लायन सम्मान प्रदान किया गया. 2004 से 2006 तक वे न्यू यॉर्क प्रांत के पोएट लॉरिएट नियुक्त किये गए. आजकल वे साऊथैम्पटन  के स्टोनी ब्रूक में ऍम ऍफ़ ए के विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं. उन्हें अमरीका के अनेक साहित्यिक सम्मान प्राप्त हुए हैं. उनकी कविताओं के अब तक चौदह संकलन प्रकाशित हुए हैं. उन्होंने ने कई काव्य संग्रहों का सम्पादन भी किया है.

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़ 

मंगलवार, फ़रवरी 18, 2014

चेहरा

एलजीरियन शॉप्स, एल सी टिफ़नी
Algerian Shops, L C Tiffany
वो एक और चेहरा/ थकान. जब मैं थकान कहता हूँ, मेरा अभिप्राय है रोज़मर्रा का जीवन. थकान एक औरत है और है एक आदमी. थकान कुर्सी है या है कैफ़े. थकान परछाई है और है अन्धकार. वह चाँद और सूरज भी है.


इन दिनों की, थकान के इन दिनों की अपनी किताबें हैं, हर कदम एक शब्द है. और शब्द कभी चुकते नहीं हैं.


एक और चेहरा / एक मिश्रण घुल रहा है, अलग-अलग हो रहा है, 
घुल रहा है कभी ना रुकते हुए वृत्तों में. 
और हर चेहरा अकेला है, तब भी जब वह दूसरे को गले लगाता है.


एक और चेहरा/ एक क्षणिक उपस्थिति कविता और स्वप्न को छूने के लिए बढ़ती है. इस यथार्थ को आप गले लगाना चाहते हैं, उसमें बसना चाहते हैं, क्योंकि बनावट कविता-सी है, प्रसार स्वप्न-सा है, मगर हर कदम की अपनी लय है और अपना क्षितिज. एक और चेहरा/ अलगाव और जुड़ाव के बीच बहस, बहस उपस्थिति और अनुपस्थिति के बीच. और इस तरह जब चलते हैं हमीदिया सूक में, तो ऐसा लगता है जैसे आप चीज़ों को देखते हैं और नहीं भी देखते, जैसे कि जो आप देख सकते हैं उसमें खोज रहे हैं वह जो आप देख नहीं सकते.



-- अदुनिस




Adonis, Griffin Poetry Prize 2011 International Shortlist अली अहमद सईद अस्बार ( Ali Ahmed Said Asbar ), जो 'अदुनिस' ( Adonis )के नाम से लिखते हैं, सिरिया के प्रसिद्ध कवि व लेखक हैं. वे आधुनिक अरबी कविता के पथप्रदर्शक हैं, जिन्होंने पुरानी मान्यताओं से विद्रोह कर कविता के अपने ही नियम बनाये हैं. अब तक अरबी में उनकी 20से अधिक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. उनके अनेक कविता संग्रह अंग्रेजी में अनूदित किये जा चुके हैं. अभी हाल-फिलहाल में, अगस्त माह के आखिरी सप्ताह में ही उन्हें 2011 के  गेटे ( Goethe) पुरुस्कार से सम्मानित किया गया. उन्हें जल्द ही नोबेल प्राइज़ भी मिलेगा , साहित्य जगत में इसकी उम्मीद व अटकलें खूब हैं, वे कई बार नामित भी किये गए हैं. यह कविता उनके 2008 के संकलन 'प्रिंटर ऑफ़ द प्लैनेट्स बुक्स ' से है.
इस कविता का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद खालेद मत्तावा ने किया है.
इस कविता का हिन्दी में अनुवाद -- रीनू  तलवाड़

शनिवार, फ़रवरी 15, 2014

महानतम प्रेम

ओल्ड वुमन विद अ कैंडल, येरित दाऊ
Old Woman with a Candle, Gerrit Dou

वह साठ बरस की है. वह जी रही 
है अपने जीवन का महानतम प्रेम.

वह बाँह में बाँह डाले चलती है 
अपने प्रिय के संग,
उसके केश हवा में लहराते हैं.
उसका प्रियतम कहता है:
"मोती की लड़ियों-सी हैं तुम्हारे लटें."

उसके बच्चे कहते हैं:
"सठिया गई है बुढ़िया."


-- अन्ना श्विर 



 अन्ना श्विर ( Anna Swir) पोलिश कवयित्री थीं. उनका जन्म वॉरसॉ में हुआ. उनके पिता एक चित्रकार थे. 1930 के दशक में उनकी कविताएं प्रकाशित होने लगीं. द्वितीय विश्व युद्ध के समय, पोलैंड के नाज़ी अधिग्रहण के दौरान वे पोलिश रेज़िस्टेंस मूवमेंट से जुड़ गईं और वॉरसॉ विद्रोह के वक्त उन्होंने सैन्य नर्स का कार्य किया. इस बीच वे भूमिगत प्रकाशनों के लिए लेखन भी रहीं. चेस्वाफ मीवोश लिखते हैं कि वे उन दिनों उनके संपर्क में थे. उन्होंने अन्ना श्विर के एक काव्य संकलन का अनुवाद भी किया है. उनकी कविताओं में युद्ध के अनुभवों का गहरा असर दिखाई देता है. 1974 में उनका 'बिल्डिंग द बैरीकेड' नमक काव्य संकलन प्रकाशित हुआ जो उस समय में देखी-भोगी पीड़ा एवं यातना का दस्तावेज़ है. वे स्त्री के शरीर और उम्र के साथ उसमें  बदलावों के बारे में भी बहुत स्पष्ट कविताएँ लिखती थीं. यह कविता उनके 1996 में प्रकाशित हुए संग्रह 'टॉकिंग टू माय बॉडी' से है.

इस कविता का मूल पोलिश से अंग्रेजी में अनुवाद चेस्वाफ मीवोश एवं लेऑनर्ड नेथन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़ 

गुरुवार, फ़रवरी 13, 2014

फ्लर्टेशन

कप एंड ओरंजिज़, पियेर-ओगयूस्त रनोआ
Cup and Oranges, Pierre-Auguste Renoir
आखिर, ज़रुरत नहीं है 
शुरू में 

कुछ भी कहने की. एक
संतरे की फांकें ट्यूलिप के फूल-सी 

खिली हुई हैं चीनी मिटटी की तश्तरी में.
कुछ भी हो सकता है.

बाहर सूरज बाँध चुका है 
बोरिया-बिस्तर 

और रात पूरे आकाश पर  
नमक बिखेर चुकी है. मेरा मन 

गुनगुना रहा है वह धुन 
जो मैंने बरसों से नहीं सुनी!

निःशब्दता की ठंडी देह --
आओ गंध लें इसकी, खा लें इसे.

कई तरीके हैं 
बना लेने के इस पल को 

एक सुन्दर बाग़ 
ताकि आनंद हो केवल 

यहाँ घूम आने में.


-- रीटा डव 



Rita dove in 2004.jpg रीटा डव अमरीकी कवयित्री व लेखिका हैं जो एम ऍफ़ ए करने के बाद एरिज़ोना स्टेट यूनिवर्सिटी में क्रिएटिव राइटिंग पढ़ाती रहीं.1993 से 1995 तक वे लाइब्रेरी ऑफ़ कांग्रेस में पोएट लॉरिएट कंसलटेंट इन पोएट्री के पद पर रहीं. इस पद को ग्रहण करने वाली वे पहली अश्वेत अमरीकी नागरिक थीं. 1987 में उन्हें कविता के लिए पुलिट्ज़र प्राइज प्रदान किया गया. इस सम्मान को प्राप्त करने वाली वे दूसरी अश्वेत अमरीकी लेखिका एवं कवयित्री थीं. 2004 से 2006 तक वे वर्जिनिया प्रांत कि पोएट लॉरिएट भी रहीं. उनके कई काव्य संकलन, एक निबंध संकलन,एक नाटक, एक उपन्यास व लघु कथाएं भी प्रकाशित हुई हैं. उन्होंने अमरीकी कवियों की कविताओं के दो संकलनों का सम्पादन भी किया है. 

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़ 


सोमवार, फ़रवरी 10, 2014

वसंत

विज़न, मिकालोयुस चिरलोनियस
Vision, Mikalojus Ciurlionis
और देखो साँप फिर प्रकट हुआ है,
अंधियारे के अपने नीड़ से, 
काली चट्टानों तले स्थित अपनी गुफा से, 
अपनी शीत-मृत्यु से
स्वयं को बाहर खींच लाया है.
वह चीड़ के नुकीले पत्तों पर फिसलता है.
घास के उगते गुच्छों के आस-पास घुमाव
बनाता, वह सूरज की तलाश में है.

लम्बी सर्दियों के बाद धूप कौन नहीं चाहेगा भला?
मै रास्ते से हट जाती हूँ,
वह अपनी लम्बी जिह्वा से हवा को परखता है,
अपनी हड्डियों के चारों ओर वह तेल-सा तरल है,

और पहाड़ी की ढलान उतर
वह बढ़ता है काले शीशे-सी सतह वाले तालाब की ओर.
कल रात ठण्ड कम नहीं थी.
मेरी नींद टूटी तो मैं उठ कर बाहर आँगन में आई थी,
और चाँद भी नहीं था.

बस, वैसे ही खड़ी रही थी मैं, मानो शून्य के जबड़ों में भिंची हुई.
कहीं दूर एक उल्लू बोला था,
और मैंने सोचा था जीसस के बारे में, कि कैसे वह 
दुबका रहा होगा अँधेरे में दो रात,
और पुनः क्षितिज के ऊपर तैर आया होगा. 

कितनी कथाएँ हैं 
जो हैं उत्तरों से कहीं सुन्दर.
मैं साँप के पीछे-पीछे तालाब की ओर चल पड़ती हूँ,
ठोस, कस्तूरी-सी गंध लिए 
वह उम्मीद-सा गोलाकार है.


-- मेरी ओलिवर




Mary Oliver मेरी ओलिवर ( Mary Oliver )एक अमरीकी कव्यित्री हैं, जो 60 के दशक से कविताएँ लिखती आ रहीं हैं. उनके 25 से अधिक कविता संकलन प्रकाशित हो चुके हैं और बहुत सराहे गए हैं. उन्हें अमरीका के श्रेष्ठ सम्मान 'नेशनल बुक अवार्ड' व 'पुलित्ज़र प्राइज़' भी प्राप्त हो चुके हैं. उनकी कविताएँ प्रकृति की गुप-चुप गतिविधियों के बारे में हैं, जैसे वो धरती और आकाश के बीच खड़ीं सब देख रहीं हैं. और  उनकी कविताओं में उनका अकेलेपन  से प्यार, एक निरंतर आंतरिक एकालाप व स्त्री का प्रकृति से गहरा सम्बन्ध भी दिखाई देता है. 

इस कविता का हिन्दी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़

शुक्रवार, फ़रवरी 07, 2014

हास्यास्पद

द लव लेटर, यूजीन द ब्लास
The Love Letter, Eugene de Blaas
सभी प्रेम-पत्र होते हैं 
हास्यास्पद. 
वे प्रेम-पत्र न होते अगर न होते
हास्यास्पद.

अपने समय में लिखे हैं मैंने भी 
प्रेम-पत्र जो थे निस्संदेह उतने ही 
हास्यास्पद.

अगर प्रेम है, तो प्रेम-पत्र 
होंगे ही 
हास्यास्पद. 

मगर असल में 
नहीं लिखे कभी जिन्होंने 
प्रेम-पत्र 
केवल वे ही हैं 
हास्यास्पद.

काश मैं लौट पाता उस समय में 
जब लिखे थे मैंने प्रेम-पत्र 
बिन सोचे कि वे हैं कितने 
हास्यास्पद.

सच तो यह है कि आज 
उन प्रेम-पत्रों 
की मेरी स्मृतियाँ 
ही हैं जो हैं 
हास्यास्पद.

(तीन से अधिक अक्षरों के सभी शब्द,
साथ ही ये असंख्य भावनाएँ 
स्वाभाविक है, कि हैं 
हास्यास्पद.


  -- फेर्नान्दो पेस्सोआ  (आल्वरो द कम्पोस )





 
फेर्नान्दो पेस्सोआ ( Fernando Pessoa )20 वीं सदी के आरम्भ के पुर्तगाली कवि, लेखक, समीक्षक व अनुवादक थे और दुनिया के महानतम कवियों में उनकी गिनती होती है. यह कविता उन्होंने  आल्वरो द कम्पोस (  Álvaro de Campos ) के झूठे नाम से लिखी थी. अपने पूरे जीवन काल में उन्होंने 72 झूठे नाम या हेट्रोनिम् की आड़ से सृजन किया, जिन में से तीन प्रमुख थे. और हैरानी की बात तो ये है की इन सभी हेट्रोनिम् या झूठे नामों की अपनी अलग जीवनी, स्वभाव, दर्शन, रूप-रंग व लेखन शैली थी. पेस्सोआ के जीतेजी उनकी एक ही किताब प्रकाशित हुई. मगर उनकी मृत्यु के बाद, एक पुराने ट्रंक से उनके द्वारा लिखे 25000 से भी अधिक पन्ने मिले, जो उन्होंने अपने अलग-अलग नामों से लिखे थे. पुर्तगाल की नैशनल लाइब्ररी में उन पन्नों की एडिटिंग का काम आज तक जारी है. यह कविता उनके संकलन 'अनकलेक्टिड पोइम्ज़ ' से है.
इस कविता का मूल पुर्तगाली से अंग्रेजी में अनुवाद रिचर्ड ज़ेनिथ ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़           

बुधवार, फ़रवरी 05, 2014

मेरे पास अभी भी वह सब है जो तुमने मुझे दिया था

वुमन विद अ रोज, पियेर ओगयूस्त रनोआ
Woman with a Rose, Pierre-Auguste Renoir

उसके किनारों पर धूल जमी है.

थोड़ा सड़ गया है.

बिन सोचे मैं उसका ख्याल रखती हूँ.

साल में एक बार उस पर देती हूँ ध्यान
जब धूप में सुखाती हूँ.

अब मैं तरसती नहीं.

उसके बदले कुछ ले नहीं पाऊँगी.


-- नाओमी शिहाब नाए 




 नाओमी शिहाब नाए ( Naomi Shihab Nye )एक फिलिस्तीनी-अमरीकी कवयित्री, गीतकार व उपन्यासकार हैं. वे बचपन से ही कविताएँ लिखती आ रहीं हैं. फिलिस्तीनी पिता और अमरीकी माँ की बेटी, वे अपनी कविताओं में अलग-अलग संस्कृतियों की समानता-असमानता खोजती हैं. वे आम जीवन व सड़क पर चलते लोगों में कविता खोजती हैं. उनके 7 कविता संकलन और एक उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं. अपने लेखन के लिए उन्हें अनेक अवार्ड व सम्मान प्राप्त हुए हैं. उन्होंने अनेक कविता संग्रहों का सम्पादन भी किया है. यह कविता उनके संकलन ''फ़ुएल " से है. 

इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़  

सोमवार, फ़रवरी 03, 2014

शब्द, फैली रात

फॉर वावा,मार्क शगाल
For Vava, Marc Chagall


इस फैली रात और हमारे बीच के फासले के 
दूसरे छोर पर कहीं, मैं सोच रही हूँ तुम्हारे बारे में.
कमरा धीमे-धीमे चाँद से मुँह मोड़ रहा है.

यह सुखद है. या इसे काट दूँ और कहूँ कि 
यह दुखद है? न जाने किस काल में गाती हूँ मैं 
चाह का असम्भव गीत...ला..लला..ला.. देखा?

इसे तुम सुन नहीं सकते. आँखें मूँद, 
उन अँधेरी पहाड़ियों की कल्पना करती हूँ मैं 
तुम तक पहुँचने के लिए जिन्हें पार करना 
होगा मुझे. क्योंकि प्रेम करती हूँ मैं तुमसे और 
वह ऐसा लगता है, या यूँ कहूँ कि शब्दों में ऐसा लगता है. 


-कैरल एन डफ्फी



 कैरल एन डफ्फी ( Carol Ann Duffy )स्कॉट्लैंड की कवयित्री व नाटककार हैं. वे मैनचेस्टर मेट्रोपोलिटन युनिवेर्सिटी में समकालीन कविता की प्रोफ़ेसर हैं. 2009 में वे ब्रिटेन की पोएट लॉरीअट नियुक्त की गईं. वे पहली महिला व पहली स्कॉटिश पोएट लॉरीअट हैं. उनके स्वयं के कई कविता संकलन छ्प चुके हैं. उन्होंने कई कविता संकलनों को सम्पादित भी किया है. अपने लेखन के लिए उन्हें अनेक सम्मान व अवार्ड मिल चुके हैं. सरल भाषा में लिखी उनकी कविताएँ अत्यंत लोकप्रिय हैं व स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा भी हैं. यह कविता उनके 1990 में प्रकाशित संकलन 'दी अदर कंट्री ' से है, जिसे टी एस एलीअट प्राइज़ मिला था.
इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़  

शनिवार, फ़रवरी 01, 2014

बारबरा

ल पों द कूर्बवोआ, यॉर्ज सरा
Le pont de Courbevoie, Georges Seurat
याद करो बारबरा
बिना रुके बारिश हो रही थी
उस दिन ब्रेस्त में
और तुम चल रही थीं 
मुस्कुराती हुई
खिली हुई, ख़ुशी
और बारिश में सराबोर
याद करो बारबरा
बिना रुके बारिश हो रही थी
ब्रेस्त में
और सियाम सड़क पर
मैं तुम्हारे पास से गुज़रा था
तुम मुस्कुरा रही थीं 
और मैं ? मैं भी तो मुस्कुरा रहा था
याद करो बारबरा
तुम जिसे मैं नहीं जानता था
तुम जो मुझे नहीं जानती थीं 
याद करो
याद करो फिर भी उस दिन को
भूलो नहीं  
एक आदमी बारिश से बच कर 
एक बरामदे में खड़ा था
और उसने तुम्हारा नाम पुकारा था
बारबरा
और बारिश में
दौड़ पड़ी थीं तुम उसकी ओर
खिली हुई, ख़ुशी
और बारिश में सराबोर
और लिपट गयी थीं तुम उस से
याद करो बारबरा
देखो मुझसे नाराज़ मत होना
अगर तुम्हें 'तुम' कहूं तो 
मैं उन सब को 'तुम' कहता हूँ
जिन्हें प्यार करता हूँ
भले एक ही बार मिला हूँ 
मैं उन सब को 'तुम' कहता हूँ
जो प्यार करते हैं
भले मैं उन्हें पहले से नहीं जानता 
याद करो बारबरा
भूलो नहीं 
तुम्हारे खिले हुए चेहरे पर
उस शांत शहर पर
गिरती वो खुशनुमा बारिश
बरसती
सागर पर
हथियारों के भंडार पर
जहाज़ों पर
ओह बारबरा
क्या नासमझी है यह युद्ध भी
क्या हाल हो गया है तुम्हारा अब
इस लोहे की, आग की, खून की बारिश में
और वह जिसने तुम्हे प्यार से
बाहों में कसा था
वह क्या नहीं रहा
लापता है या है जिंदा अभी भी
ओह बारबरा
आज भी ब्रेस्त में बिना रुके बारिश हो रही है
जैसे पहले हुआ करती थी
मगर अब कुछ भी वैसा नहीं रहा
सब उजड़ गया है 
अब तो लोहे का खून का
तूफ़ान भी थम चुका 
बस बरस रही है
शोक की उदास उजड़ी बारिश
बस छाए हैं घने बादल 
जो कुत्तों की मौत मर रहे हैं
ब्रेस्त पर पानी बनकर बरस रहे हैं
और सड़ रहे हैं जा कर कहीं दूर
दूर ब्रेस्त से बहुत दूर
ब्रेस्त जहाँ कुछ नहीं बचा है 


-- याक प्रेवेर 



 
याक प्रेवेर  (Jacques Prévert)फ़्रांसिसी कवि व पटकथा लेखक थे. अत्यंत सरल भाषा में लिखी उनकी कविताओं ने उन्हें फ्रांस का, विक्टर ह्यूगो के बाद का, सबसे लोकप्रिय कवि बना दिया. उनकी कविताएँ अक्सर पेरिस के जीवन या द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के जीवन के बारे में हैं. उनकी अनेक कविताएँ  स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं व प्रसिद्ध गायकों द्वारा गायी गयी  हैं. उनकी लिखी पटकथाओं व नाटकों को भी खूब सराहा गया है. उनकी यह कविता उनके सबसे प्रसिद्द कविता संग्रह 'पारोल' से है. 
इस कविता का मूल फ्रेंच से हिंदी में अनुवाद -- रीनू  तलवाड़