बुधवार, जुलाई 31, 2013

मैंने स्वयं को सादगी से जीना सिखाया

लैंडस्केप विद वुमन वाकिंग,
विन्सेंट वान गोग
Landscape with Woman Walking,
Vincent Van Gogh
मैंने स्वयं को सादगी से, समझदारी से जीना सिखाया, 
सिखाया आकाश की ओर आँखें उठाना, प्रार्थना करना, 
और सांझ ढलने से बहुत पहले घूमना 
ताकि थक जाएँ मेरी अनावश्यक चिंताएं.
जब घाटी में झाड़ियाँ सरसराती हैं 
और झड़ते हैं रक्त कोल रसभरी के लाल-पीले गुच्छे 
मैं रचती हूँ आनंद-भरी कविताएँ 
जीवन के ह्रास के बारे में, ह्रास और सौंदर्य के बारे में.
मैं लौटती हूँ. रोएँदार बिल्ली 
मेरा हाथ चाटती है, प्यार-से घुरघुराती है     
और झील के पास आराघर के बुर्ज पर 
आग की लपटें भड़कती हैं. 
छत पर उतरते किसी सारस की पुकार ही केवल 
तोडती है कभी-कभी मौन को. 
अगर तुम अब मेरे द्वार पर दस्तक दो 
तो शायद मैं सुन ही ना पाऊँ 


-- आना आख्मतोवा 



Requiem
                                                                                                                                                                                          



आना आख्मतोवा 20 वीं सदी की जानी-मानी रूसी कवयित्री हैं. वे 24 वर्ष की थी जब उनका पहला कविता संकलन प्रकाशित हुआ और अगले 7 वर्षों में उनके 4 संकलन और प्रकाशित हुए. वे 'आर्ट फॉर आर्ट ' की समर्थक थी. मगर रूसी क्रांति के बाद, लेखकों, कवियों, चित्रकारों की स्वंत्रता में बाधा आ गई. 7 वर्ष तक उन्हें कुछ प्रकाशित करने की अनुमति नहीं दी गई. हालाँकि उन्होंने देशभक्तिपूर्ण कविताएँ सरकारी मैगजीनों में छपवायीं, मगर उनकी दूसरी कविताओं को प्रकाशित नहीं होने दिया गया. उनकी सबसे प्रसिद्द कविताएँ -- रिक्वीम और पोएम विदाउट अ हीरो, अपने देश के राजनैतिक माहौल व रूस की काम्यनिस्ट सरकार के बारे में हैं.
इस कविता का मूल रशियन से अंग्रेजी में अनुवाद रिचर्ड मक्केन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद रीनू तलवाड़