लाइलैकस, विन्सेंट वान गोग Lilacs, Vincent Van Gogh |
लाइलैक की टहनियाँ हवा में झूल रही हैं
और बालकॉनी के खुले दरवाज़े से
ज़मीन पर सरकती आती
उनकी छाया भी झूल रही है.
आज मैंने खिडकियों के शीशे साफ़ किये
और बहुत देर तक उदास रहा:
अचानक सबकुछ
इतना साफ़, इतना पास,
इतना इस पल में प्रतिष्ठित था,
कि मेरा दूर होना
और स्पष्ट हो गया,
और उदास लगने लगा.
क्या केवल किसी पतझड़ के अंत में,
किसी जंगल में
मिला हूँ मैं अपने दोस्तों से:
नन्हे पंछियों से, देवदारों से?
क्या वहां मैं खुद से भी मिल चुका हूँ?
यह उदासी कहाँ से आती है?
सूरज आगे बढ़ जाता है.
हवा थम जाती है.
लाइलैक की टहनियों की छाया
ओझल होने से पहले
किताबों की शेल्फ पर झूलती रहती है.
-- यान काप्लिन्स्की
यान काप्लिन्स्की ( Jaan Kaplinski )एस्टोनिया के कवि, भाषाविद व दार्शनिक हैं व यूरोप के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं. वे अपने स्वतंत्र विचारों व वैश्विक सरोकारों के लिए जाने जाते हैं. उनके कई कविता-संग्रह, कहानियां, लेख व निबंध छप चुके हैं. उन्होंने कई भाषाओँ से कई भाषाओँ में अनुवाद किये है व उनके स्वयं के लेखन का भी कई भाषाओँ में अनुवाद हुआ है. यह कविता उनके संकलन 'ईवनिंग ब्रिनग्ज़ एवरीथिंग बैक ' से है.
इस कविता का मूल एस्टोनियन से अंग्रेजी में अनुवाद फियोना सैम्प्सन ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
remarkable poem. equally remarkable rendering.
जवाब देंहटाएंThank you, Rajesh ji :)
जवाब देंहटाएंMaza aa gaya. Aankhe.n khul gayi.n
जवाब देंहटाएंशुक्रिया :-)
जवाब देंहटाएंlilacs and dancing shadows become realizations and what a picturesque description and expression of impact of this picture on the heart and mind of the poet. Great translation.
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