आरयनतयी, लेट आफ्टरनून, क्लौद मोने Argenteuil, Late Afternoon , Claude Monet |
अपनी पारदर्शिता पर मोहित दिन
झिझकता है जाने और ठहरने के बीच.
यह गोलाकार दोपहर अब एक घाटी है
जहाँ नि:शब्दता में दुनिया झूलती है.
सब प्रत्यक्ष है और सब पकड़ से बाहर,
सब पास है और छुआ नहीं जा सकता.
कागज़, किताब, पेंसिल, गिलास
अपने-अपने नामों की छाँव में बैठे हैं.
मेरी धमनियों में धड़कता समय
उसी न बदलने वाले रक्तिम शब्दांश
को दोहराता है.
रोशनी बना देती है उदासीन दीवार को
प्रतिबिम्बों का एक अलौकिक मंच.
मैं स्वयं को एक आँख की पुतली में
पाता हूँ, उसकी भावशून्य ताक में
स्वयं को ही देखता हुआ.
वह पल बिखर जाता है. एकदम स्थिर,
मैं ठहरता हूँ और जाता हूँ : मैं एक विराम हूँ.
-- ओक्तावियो पास
इस कविता का मूल स्पेनिश से अंग्रेजी में अनुवाद एलियट वाइनबर्गर ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
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