ल सोमई, ओग्यूस्त रोदें Le Sommeil, Auguste Rodin |
मैंने तुम्हें सपनों में इतना देखा है
कि तुमने अपनी वास्तविकता खो दी है.
क्या अभी भी समय है इस सजीव देह को छूने का
और चूमने का इन होंठों से निकलती आवाज़ को
जो मुझे इतनी प्यारी है ?
मैंने तुम्हें सपनों में इतना देखा है कि मेरी बाहें,
जिन्हें मेरी छाती से चिपट-चिपट आदत हो गयी है
तुम्हारी छाया के आलिंगन की,
शायद तुम्हारी देह के आकार को लिपट न पायें.
और जो दिनों से और सालों से
मुझ पर शासन करती है, बसी है मुझ में,
उस को वास्तव में देख
मैं ही छाया बन जाऊँगा निस्संदेह.
आह! कैसा संतुलन है.
मैंने तुम्हें सपनों में इतना देखा है कि डरता हूँ
अब समय ही नहीं बचा है मेरे जागने के लिए.
मैं खड़े-खड़े सोता हूँ, मेरा बदन खुला हुआ है
जीवन के हर पक्ष को, प्यार को और तुम को,
आज एक तुम ही मेरे लिए मायने रखती हो.
तुम्हारा चेहरा और तुम्हारे होंठ
उतने भी नहीं छू पाऊंगा मैं,
जितने किसी पास से निकलने वाले के छू पाता.
मैंने तुम्हें सपनों में इतना देखा है, इतना चला हूँ,
इतनी बातें की हैं, सोया हूँ तुम्हारी छाया के साथ
कि मेरे पास शायद कुछ भी नहीं बचा है,
मगर फिर भी,
परछाइयों के बीच परछाई होना,
उस छाया से सौ गुना घनी छाया होना
जो ख़ुशी-ख़ुशी चलती है
और चलेगी,
तुम्हारे जीवन की धूपघड़ी पर.
-- रोबेर देज़्नोस
इस कविता का मूल फ्रेंच से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
कविता हर बार प्रेम की अनगिनत परतें खोलती हुई...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन....ख्वाब जब हकीकत हो जाते हैं तो भी यकीन नहीं होता की वो सच हो गए हैं..सामने हैं
जवाब देंहटाएंभाषा और भावानुवाद, रीनू. ...जीवन की धूपघड़ी
जवाब देंहटाएंरीनू, यूँ तो आपको काफी दिनों से जान रही हूँ. पर अब, जब फेसबुक की हलचल से अलग इन कविताओं को पढ़ रही हूँ तो सच मनो,... एक बिलकुल नया अनुभव दे रही हैं ये कवितायेँ. प्रेम के प्रति अद्भुद दृष्टिकोण, जो पढ़े जां एकी प्यास को और भी बढ़ाती हों...
जवाब देंहटाएंमैंने तुम्हें सपनों में इतना देखा है
कि तुमने अपनी वास्तविकता खो दी है... बहुत अच्छा लगा इन पंक्तियों को पढ़ना