रेड वाल डेस्टिनी, वैसिली कैनडिनस्की Red Wall Destiny, Wassily Kandinsky |
हवा भी चाहती है बनना
वह गाड़ी
जो तितलियाँ खींचतीं हैं.
मुझे याद है पागलपन:
मन के तकिये पर
टेक लगा कर पहली बार,
मैं अपनी देह से बातें कर रहा था.
मेरी देह बस एक ख्याल थी
जो मैंने लाल रंग से लिखा था.
सूरज का सबसे सुन्दर सिंहासन लाल था
और बाकी सब रंग
लाल दरियों पर प्रार्थना करते थे.
रात एक और दीपक है.
हर टहनी में एक बाजू,
अंतरिक्ष में ले जाया गया एक सन्देश
जो हवा की देह से गुंजित होता.
सूरज की हठ है कि वह धुंध ही पहनेगा
जब भी मुझसे मिलेगा:
क्या मैं रोशनी से डांट खा रहा हूँ?
ओह, मेरे बीते दिन,
वे नींद में चलते थे
और मैं उनका सहारा लेता था.
प्यार और स्वप्न दो कोष्ठक हैं.
उनके बीच में रखता हूँ मैं अपनी देह
और खोजता हूँ दुनिया को.
कई बार मैंने
हवा को उड़ते देखा दो घास-पैरों से
और सड़क को नाचते देखा हवा के बने पैरों से.
मेरी इच्छाएं फूल हैं
जो दाग लगा रहीं हैं मेरी देह पर.
मैं जल्दी घायल हुआ था,
और जल्दी सीखा था मैंने
कि घावों ने ही बनाया है मुझे.
जो मेरे भीतर चलता है
मैं अभी भी करता हूँ उस बच्चे का पीछा.
वह अब खड़ा है एक रोशनी से बनी सीढ़ी पर.
एक कोना ढूंढता हुआ,
करने के लिए आराम
और पढने के लिए रात का चेहरा.
अगर चाँद एक घर होता
मेरे पाँव उसकी देहरी छूने से मना कर देते.
धूल उन्हें ले जाती है
और मुझे लिए जाती है मौसमों की हवा के पास.
मैं चलता हूँ,
एक हाथ हवा में,
दूसरा हाथ सपनों में.
एक सितारा भी
अंतरिक्ष के मैदानों में बस एक पत्थर है.
केवल वही
जो जुड़ा है क्षितिज से
बना सकता है नए रास्ते.
क्या कहूँ मैं उस देह को जिसे
छोड़ आया था मलबे में
उस घर के जहाँ मैं पैदा हुआ था?
कोई नहीं बता सकता मेरा बचपन
सिवाय उन तारों के
जो टिमटिमाते हैं उस के ऊपर
और छोड़ जाते हैं पैरों के निशान
शाम के पथ पर.
मेरा बचपन पैदा हो रहा है अभी भी
जुड़ी हथेलियों में एक रोशनी की
जिसका नाम मैं नहीं जानता
और जो मुझे नाम देती है.
उस नदी को उसने बनाया एक आईना
और पूछा अपने दुःख के बारे में.
उसने बादलों की नक़ल की और अपनी
उदासी में से बारिश बरसा दी.
तुम्हारा बचपन एक गाँव था.
चाहे तुम कितना भी दूर जाओ
उसकी हदें तुम कभी पार नहीं कर पाओगे.
उसके दिन हैं झीलें
उसकी यादें तैरती लाशें.
तुम जो उतर रहे हो
बीते कल के पर्वतों से,
तुम इन पर दोबारा कैसे चढ़ पाओगे,
और क्यों?
समय एक द्वार है
जो मैं खोल नहीं सकता.
मेरा जादू घिस गया है
मेरे मंत्र सो चुके हैं.
मैं एक गाँव में पैदा हुआ था,
जो था गर्भ की तरह छोटा और रहस्यभरा.
मैं उसको कभी छोड़ कर नहीं गया.
मुझे प्यार है सागर से, किनारों से नहीं.
-- अदुनिस
अली अहमद सईद अस्बार ( Ali Ahmed Said Asbar ), जो 'अदुनिस' ( Adonis )के नाम से लिखते हैं, सिरिया के प्रसिद्ध कवि व लेखक हैं. वे आधुनिक अरबी कविता के पथप्रदर्शक हैं, जिन्होंने पुरानी मान्यताओं से विद्रोह कर कविता के अपने ही नियम बनाये हैं. अब तक अरबी में उनकी 20से अधिक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. उनके अनेक कविता संग्रह अंग्रेजी में अनूदित किये जा चुके हैं. अभी हाल-फिलहाल में, अगस्त माह के आखिरी सप्ताह में ही उन्हें 2011 के गेटे ( Goethe) पुरुस्कार से सम्मानित किया गया. उन्हें जल्द ही नोबेल प्राइज़ भी मिलेगा , साहित्य जगत में इसकी उम्मीद व अटकलें खूब हैं, वे कई बार नामित भी किये गए हैं.
इस कविता का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद खालेद मत्तावा ने किया है.
इस कविता का हिन्दी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
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