शुक्रवार, जनवरी 20, 2012

लगभग

अंडर द पाइन ट्रीज़ एट द एंड ऑफ़ डे, क्लौद मोने
Under The Pine Trees At The End Of Day,
Claude Monet 

फोंतैनब्लो में 
होटल लेग्ल नोआर के सामने 
रोज़ा बोनर द्वारा गढ़ी बैल की मूर्ती है
थोड़ा आगे जाने पर 
चारों ओर जंगल है 
और थोड़ा और आगे 
तन का सौंदर्य है 
और फिर से जंगल है 
और दुःख है 
और एकदम साथ ही में सुख है 
सुख...आँखों के नीचे काले गड्ढे लिए 
सुख...पीठ में चीड़ की नुकीली पत्तियों की चुभन लिए 
सुख...जो कुछ भी नहीं सोच रहा है 
बैल की मूर्ती जैसा सुख
जो रोज़ा बोनर ने गढ़ी है
और फिर दुःख है 
दुःख...सोने की घड़ी पहने 
दुःख...जिसे एक ट्रेन पकड़नी है 
दुःख...जो सबकुछ सोचता है
सबकुछ 
सबकुछ...सबकुछ...सबकुछ...
और सबकुछ...
और जो "लगभग" हर बार ही जीतता है 
लगभग 



-- 
याक प्रेवेर



याक प्रेवेर  ( Jacques Prévert )फ़्रांसिसी कवि व पटकथा लेखक थे. अत्यंत सरल भाषा में लिखी उनकी कविताओं ने उन्हें फ्रांस का विक्टर ह्यूगो के बाद का सबसे लोकप्रिय कवि बना दिया. उनकी कविताएँ अक्सर पेरिस के जीवन या द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के जीवन के बारे में हैं. उनकी अनेक कविताएँ  स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं व प्रसिद्ध गायकों द्वारा गायी गयी  हैं. उनकी लिखी पटकथाओं व नाटकों को भी खूब सराहा गया है. उनकी यह कविता उनके सबसे प्रसिद्द कविता संग्रह 'पारोल' से है.

इस कविता का मूल फ्रेंच से हिंदी में अनुवाद -- रीनू  तलवाड़

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