द वेव, अलबर्ट बियरशटाड The Wave, Albert Bierstadt |
जलते हुए से, पतझड़ के पत्ते बहुत चाहते हैं हवा को,
उसकी उत्तेजित साँसों को,
और द्रुत लय में घूमते पहुँच जाते हैं अपनी मृत्यु के पास.
यहाँ ही नहीं, तुम हर कहीं हो.
पूजता है धरती को, झुक-झुक जाता है, जवाब में
गहराते पर्वतों में धरती भी तरसती है. रात
है एक समानुभूति, आँखों में आंसुओं की जगह तारे लिए.
यहाँ नहीं,
तुम वहां हो जहाँ मैं खड़ी हूँ, किनारे के लिए पगलाते
सागर को सुनती, चाँद को धरती के लिए
तरसते, व्यथित होते देखती. जब सुबह होती है, सूरज,
उद्दीप्त, पेड़ों को सोने में ढंकता है, मौसमों में से,
कारणों में से, चल कर आते हो तुम मेरे पास.
-- कैरल एन डफ्फी
कैरल एन डफ्फी ( Carol Ann Duffy )स्कॉट्लैंड की कवयित्री व नाटककार हैं. वे मैनचेस्टर मेट्रोपोलिटन युनिवेर्सिटी में समकालीन कविता की प्रोफ़ेसर हैं. 2009 में वे ब्रिटेन की पोएट लॉरीअट नियुक्त की गईं. वे पहली महिला व पहली स्कॉटिश पोएट लॉरीअट हैं. उनके स्वयं के कई कविता संकलन छ्प चुके हैं. उन्होंने कई कविता संकलनों को सम्पादित भी किया है. अपने लेखन के लिए उन्हें अनेक सम्मान व अवार्ड मिल चुके हैं. सरल भाषा में लिखी उनकी कविताएँ अत्यंत लोकप्रिय हैं व स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा भी हैं. यह कविता उनके 2005 में छपे संकलन ' रैप्चर ' से है, जिसे टी एस एलीअट प्राइज़ मिला था.
इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें