अं कूप्ल दामुरअ, विन्सेंट वान गोग |
देर रात चलती रेलगाड़ियों की तरह,
बड़े बड़े स्टेशनों पर ही रुकेगी,
तब भी नहीं भूलूंगा तुम्हें.
मैं याद करूँगा
तुम्हारे आँखों में फैली अनंत
यह उदास शाम,
मेरे कंधे पर तुम्हारी दबी-सी सिसकी,
जो धूल की तरह
कभी झाड़ी नहीं जा सकेगी.
वियोग का क्षण आया
और मैं चला गया,
तुमसे बहुत दूर कहीं.
कुछ ख़ास नहीं,
पर किसी-किसी रात,
किसी की उँगलियाँ
तुम्हारे बालों में गुंथ जाएँगी,
मेरी दूरस्थ उँगलियाँ
मीलों का सफ़र तय करेंगी.
-- इस्माइल कदारे
इस्माइल कदारे अल्बेनिया के कवि व लेखक हैं. अब वे अपने उपन्यासों के लिए अधिक जाने जाते हैं मगर पहले अपनी कविताओं से ही पहचाने जाने लगे थे. 2005 में मैन-बुकर का इंटरनैशनल लिटरेचर प्राइज़ सर्वप्रथम उन्हें ही प्राप्त हुआ था. वे अल्बेनिया के इलावा फ़्रांस में काफी समय व्यतीत करते हैं, और उनकी कविताएँ व उपन्यास फ्रेंच में खूब अनूदित हुए हैं. यहाँ तक कि अंग्रेजी में उनके लेखन का अनुवाद अधिकतर फ्रेंच से किया गया है न की अल्बेनियन से. 40 देशों में उनके किताबें प्रकाशित हुई हैं व 30 भाषाओँ में उनके लेखन का अनुवाद हुआ है. बुकर प्राइज़ सहित उन्हें कई पुरुस्कार मिल चुके हैं व नोबेल प्राइज़ के लिए वे कई बार नामित किये जा चुके हैं.
इस कविता का मूल अल्बेनियन से अंग्रेजी में अनुवाद राबर्ट एलसी ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
प्यार जिंदा रहता है तब भी जब मील से अलग और पार मील और प्रतीति में दूरी जुदाई भंग कर सकते हैं सोचा.
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुंदर!
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