दानैद, ओग्यूस्त रोदें Danaid, Auguste Rodin |
देह को याद है कितने लम्बे खिंच जाते हैं साल
जब देह को कोई नहीं छूता, अकेलेपन की
एक धूसर सुरंग, पंछी की पूंछ से धीमे-धीमे
चक्कर खाकर नीचे सीढ़ी पर गिरा पंख, जो
किसी ने हटा दिया, बिना देखे कि वह एक पंख था.
देह खाती रही, चलती रही, सोती रही अपने-आप ही,
हिलाती रही अपना 'मिलते हैं' कहने वाला हाथ.
मगर देह को लगा कि वह कभी दिखी ही नहीं, कभी
नक़्शे पर जानी नहीं गयी किसी देश की तरह,
एक शहर जैसे नाक, एक शहर जैसी कमर,
मस्जिद का चमकता गुम्बद,
और दालचीनी व रस्सी के सैंकड़ों-सैंकड़ों गलियारे.
देह को उम्मीद थी, यही तो देह करती है.
घाव पूरी तरह भर देती है, रास्ता बनाती है.
प्यार का अर्थ है की तुम दो देशों में सांस लेते हो.
और देह याद रखती है -- रेशम, नुकीली घास,
अपनी निजी गुप्त जेब में गहरे कहीं.
अब भी, जब देह अकेली नहीं है,
उसे याद है अकेले होना, और वो आभारी है
किसी विशालता की, इसलिए, कि यात्री होते हैं,
कि लोग जाते हैं उन जगहों पर,
जो उनसे कहीं विशाल, कहीं बृहद होती हैं.
-- नाओमी शिहाब नाए
नाओमी शिहाब नाए ( Naomi Shihab Nye )एक फिलिस्तीनी-अमरीकी कवयित्री, गीतकार व उपन्यासकार हैं. वे बचपन से ही कविताएँ लिखती आ रहीं हैं. फिलिस्तीनी पिता और अमरीकी माँ की बेटी, वे अपनी कविताओं में अलग-अलग संस्कृतियों की समानता-असमानता खोजती हैं. वे आम जीवन व सड़क पर चलते लोगों में कविता खोजती हैं. उनके 7 कविता संकलन और एक उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं. अपने लेखन के लिए उन्हें अनेक अवार्ड व सम्मान प्राप्त हुए हैं. उन्होंने अनेक कविता संग्रहों का सम्पादन भी किया है. यह कविता उनके संकलन "वर्डज़ अंडर द वर्डज़ " से है.
इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
उसे याद है अकेले होना, और वो आभारी है
जवाब देंहटाएंकिसी विशालता की, इसलिए, कि यात्री होते हैं,
कि लोग जाते हैं उन जगहों पर,
जो उनसे कहीं विशाल, कहीं बृहद होती हैं.
waah..