द गार्डन गेट, क्लौद मोने The Garden Gate, Claude Monet |
कि यह धरती स्वप्न नहीं है, जीती-जागती देह है,
कि दृष्टि, स्पर्श और श्रवण झूठ नहीं बोलते,
कि यहाँ जो सब तुमने कभी देखा है,
फाटक के बाहर से देखे बगीचे जैसा है.
तुम अन्दर नहीं जा सकते.
मगर तुम्हें पूर्ण विश्वास है कि वह है. अगर
हम थोड़ा और ध्यान और समझदारी से देख सकते
तो बगीचे में कहीं हम खोज निकालते
एक अनोखा नया फूल और एक अनाम नक्षत्र.
कुछ लोग कहते हैं कि हमें नहीं करना चाहिए
अपनी आँखों पर विश्वास,
कि कुछ वास्तव में है ही नहीं, केवल एक प्रतीति है,
ये वहीं लोग हैं जिन्हें कोई भी उम्मीद नहीं.
वे सोचते हैं कि जिस पल हम मुँह फेर लेते हैं,
हमारी पीठ के पीछे
दुनिया का अस्तित्व ही नहीं रहता,
मानो चोरों के हाथों ने हर लिया हो.
-- चेस्वाफ़ मीवोश
चेस्वाफ़ मीवोश (Czeslaw Milosz) पोलैंड के प्रसिद्द कवि, लेखक व अनुवादक थे. उनका जन्म लिथुएनिया में हुआ था और वे पांच भाषाएँ जानते थे -- पोलिश, लिथुएनिअन,रशियन, अंग्रेजी व फ्रेंच. द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात,1951 में उन्होंने पोलैंड छोड़ फ्रांस में आश्रय लिया, और 1970 में अमरीका चले गए. वहां वे यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया में पोलिश साहित्य के प्रोफ़ेसर रहे. उनके 40 से भी अधिक कविताओं व लेखों के संकलन प्रकाशित हुए हैं व कई भाषाओँ में अनूदित किये गए हैं. अन्य कई सम्मानों सहित उन्हें 1980 में नोबेल प्राइज़ भी मिल चुका है.
इस कविता का मूल पोलिश से अंग्रेजी में अनुवाद रोबेर्ट हास व रोबेर्ट पिन्सकी ने किया है.
इस कविता का हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
हमारी उम्मीद ही हमारे लिए दुनिया रचती है..
जवाब देंहटाएंएक उम्दा कविता का बेहद भावप्रवण अनुवाद!
बधाई...
आज बहुत दिन बाद ब्लॉग पर आया हूँ और घूमने का मन है...
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/06/3.html
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंShukriya Rashmi Prabha ji :)
जवाब देंहटाएं