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पॉल गौगेंज़ आमचेयर, विन्सेंट वान गोग Paul Gauguin's Chair, Vincent Van Gogh |
एक कड़ुआ-सा उनींदापन
आ जाता है अपने दिए जलाने
क्या मैं अपने प्रेम के पत्र उनकी स्याही को लौटा दूँ?
क्या मैं इन तस्वीरों को फाड़ दूँ?
मैं पढ़ता हूँ अपनी देह अब
और भरता हूँ इस लम्बी रात के दिए को उदासी से
-- अदुनिस
इस कविता का मूल अरबी से अंग्रेजी में अनुवाद खालेद मत्तावा ने किया है.
इस कविता का हिन्दी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
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