सुर्रेअलिस्टिक लैंडस्केप, डेविड बुर्ल्यूक Surrealistic Landscape, David Burluik |
दिन-भर रंगा है दीवार को मजदूरों ने मगर
सूर्यास्त होते ही रंग उतर जाता है
दिखने लगती है दीवारों की कालिख
घड़ी फिर से बजाने लगती है वह घंटा
जिसके लिए वर्षों में कोई स्थान नहीं है
और राख की चादर में लिपटा रात को
मैं एक साँस में जागता हूँ
यह वह समय होता है जब मृतकों की दाढ़ी बढ़ा करती है
मुझे याद आता है कि मैं गिर रहा हूँ
कि मैं ही हूँ कारण
और यह भी कि एक बाँह वाले बच्चे की
सिमटी आस्तीन की तरह
मेरे शब्द हैं वस्त्र
उसके जो मैं कभी न हो सकूँगा
-- डब्ल्यू एस मर्विन
डब्ल्यू एस मर्विन ( W S Merwin )अमरीकी कवि हैं व इन दिनों अमरीका के पोएट लॉरीअट भी हैं.उनकी कविताओं, अनुवादों व लेखों के 30 से अधिक संकलन प्रकाशित हो चुके हैं .उन्होंने दूसरी भाषाओँ के प्रमुख कवियों के संकलन, अंग्रेजी में खूब अनूदित किये हैं, व अपनी कविताओं का भी स्वयं ही दूसरी भाषाओँ में अनुवाद किया है.अपनी कविताओं के लिए उन्हें अन्य सम्मानों सहित पुलित्ज़र प्राइज़ भी मिल चुका है.वे अधिकतर बिना विराम आदि चिन्हों के मुक्त छंद में कविता लिखते हैं.यह कविता उनके संकलन 'प्रेजेंट कंपनी' से है..
इस कविता का मूल अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
Wonderful! the poem and the translation!
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