सेल्फ पोर्ट्रेट, फ्रीदा काहलो |
वो समय भी आएगा
जब, उल्लासित हो
तुम अपने ही द्वार पे पधार
अपने ही आईने में
स्वयं ही को देखोगे
और एक-दूसरे के स्वागत में
दोनों मुस्कुराओगे
और कहोगे, बैठो यहाँ. लो खाओ.
तुम फिर उस अजनबी से प्रेम करोगे,
वो जो तुम ही थे.
मय दोगे. निवाला दोगे.
अपना दिल वापिस दोगे
अपने दिल को,
उस अजनबी को
जिसने प्रेम किया है तुम से सारी उम्र,
जो तुम्हे भीतर तक जानता है,
जिसे तुमने अनदेखा किया
किसी और के लिए.
पुराने संदूक से प्रेमपत्र निकाल फेंको
वो तस्वीरें, वो निराशाभरी पातियाँ
आईने से अपना प्रतिबिम्ब हटाओ.
बैठो. अपने जीवन का उत्सव मनाओ.
-- डेरेक वालकॉट
डेरेक वालकॉट वेस्ट इंडीज़ के कवि, नाटककार व लेखक हैं. 1992 में वे नोबेल पुरुस्कार से सम्मानित किये गए थे. उनके अनेक कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं, जिन में उनका महाकाव्य 'ओमेरोस' भी है. उन्होंने बीस नाटक भी लिखे हैं जिनका विश्व भर में प्रदर्शन हुआ है. उनका नवीनतम कविता संग्रह ' वाईट एग्रेट्स' 2010 में प्रकाशित हुआ जिसे टी.एस एलीयट पोएट्री प्राइज प्राप्त हुआ.
हिन्दी में अनुवाद -- रीनू तलवाड़
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें